- 168 Posts
- 108 Comments
हरेश कुमार
इश्क ही तो किया है,
कोई अपराध तो नहीं।
फिर इतना
डरती क्यों हो।
प्यार भी करो
लेकिन इजहार ना!!
भला ऐसा भी कहीं होता है।
ऐसा नहीं था,
कि उसे वो कुबूल नहीं था।
पर जमाने से वो डरती थी।
फूल तो चाहिए,
गुलाब का ही।
लेकिन, खुशबू ना फैले।
दूसरों को आहट ना हो इसकी
भला ऐसा भी कहीं हो सकता था।।
आहिस्ता-आहिस्ता
पहले घर,
फिर मुहल्ला,
फिर शहर में ये बात आम हो चली।
वो देखो,
दो दीवाने शहर से दूर,
अपने में
मग्न और मस्ताने चले जा रहे हैं।
लेकिन तभी
जमाने की बुरी नजर लग गई।
जिसकी आशांका थी,
उसे।
वही हुआ।
दोनों जुदा हो गए,
या कर दिए गए।
ये तो वही जाने बेहतर।
लेकिन उन्हें जुदा होना
मंजूर नहीं था।
जमाने के बंधनों के आगे
झुकने को तैयार नहीं थे।
सो, तोड़ दिए गए।
आज वही जमाना उन्हें पूजता है।
जो जिंदा रहने पर
जिंदगी दुस्वार किए बैठा था।
जिसने जिंदगी ले ली।।
आज वो अगरबत्तियां,
जला रहा है,
उसकी याद में।।
Read Comments