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कानून को ढेंगे पर रखते हैं संजय दत्त जैसे लोग..!!

http://information2media.blogspot.in/2012/04/blog-
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हरेश कुमार

संजय दत्त, आर्म्स एक्स में दोषी। 90 दिन में 58 दिन की छुट्टी यानि पैरोल पर रिहा। पिछली बार, जुडवां बच्चे का जन्मदिन और दीपावली मनाया तो इस बार क्रिसमस और नए साल की तैयारी। बहाना खुद, पत्नी और बेटी की बीमारी का। पत्नी मान्यता 5 तारीख को फिल्म – आर राजकुमार की पार्टी में देर रात तक मौजूद। अगले दिन एक और जन्मदिन पार्टी में रात भर मौजूद देखी गई। क्या, कोई गंभीर तौर पर बीमार इंसान देर रात की पार्टियों में जश्न मना सकता है?

ये पार्टी की तस्वीर है

जैसा कि सबको मालूम है कि संजय दत्त 1993 में मुंबई में हुए दंगों के दौरान अवैध तौर पर हथियार रखने का मामला कोर्ट में सिद्ध हो चुका है और उन्हें कोर्ट ने सजा सुना भी दी है। हालांकि अन्य लोगों की तुलना में इन्हें उतनी सजा नहीं मिली, जितनी मिलनी चाहिए थी। ऊपर से जेल अधिकारियों का नरम रवैया इनके स्पेशल स्टेटस को ही जाहिर करता है। मुंबई का यरवडा जेल संजय दत्त के लिए पिकनिक स्पॉट की तरह है, जहां वे जब मर्जी होती है अंदर चले जाते हैं और जब मर्जी होती है, बाहर आ जाते हैं। इसमें जेल प्रशासन से लेकर मुंबई में सत्ता के केंद्र में बैठे नेता उनकी यथासंभव मदद करते हैं।

यरवड़ा जेल में संजय दत्त को वीआईपी ट्रीटमेंट मिलने की खबरें लगातार बाहर आती रहती हैं और उनसे मिलने के लिए समय-समय पर फिल्मी हस्तियां जेल में जाती रही हैं। अभी पिछले अक्टूबर महीने में संजय दत्त को जेल प्रशासन से 14 दिन की छुट्टी मिली थी, जिसे उन्होंने मेडिकल के आधार पर फिर से 15 दिन बढ़ा लिया था और इस तरह से वे पूरे अक्टूबर महीने में जेल से बाहर रहे।

उल्लेखनीय है कि संजय दत्त को 1993 में मुंबई बम ब्लास्ट केस में पांच साल की सजा हुई थी, जिसमें से बचे 42 महीने की सजा वह अब काट रहे हैं।

आम भारतीयों के मन में यह सवाल उठना लाजिमी है कि एक तरफ कई कैदी जेल में गंभीर तौर पर बीमार होते हैं और उन्हें देखने वाला कोई नहीं होता है तो दूसरी तरफ एक रसूख वाला आदमी जेल प्रशासन की मिलीभगत से जब चाहे इसे पिकनिक स्पॉट की तरह इस्तेमाल करता रहे। क्या यही भारतीय न्याय व्यवस्था है?

कुछ लोग संजय दत्त को परिस्थिति का शिकार बताते हैं। हमें ऐसे लोगों की सोच पर तरस आती है, वे बाकि लोगों पर यही फार्मूला क्यों नहीं अपनाते हैं। जबकि संजय दत्त ने अपने पिता फिल्म अभिनेता, सांसद और सामाजिक कार्यकर्ता, सुनील दत्त तक से दाउद और उसके नेटवर्क से अपने संबंधों के बारे में झूठ बोला था। उन्हें गुमराह किया था।

यहां तक कि सात साल बाद भी वे मुंबई दंगों के मुख्य आरोपियों में से एक और दाउद के निकट सहयोगी, छोटा शकील के साथ बात करते पकड़े गए थे। मुंबई पुलिस के पास इस बात के पक्के सबूत हैं। संजय दत्त को अपने किए पर कोई पछतावा नहीं है। ऐसे अपराधियों के साथ कानून अगर सही से पेश नहीं आता है और उसे उसके पारिवारिक स्टेटस का फायदा मिलता है तो ऐसे अपराधियों को बढ़ावा ही मिलेगा, जो कानून को अपने ढेंगे पर रखते हैं?

क्या कोई अपने दिल पर हाथ रखकर कह सकता है कि भारत में न्याय प्रणाली सबों के साथ एकसमान न्याय करती है। अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत जस्टिस एके गांगुली का केस देख सकते हैं, कि किस तरह से सुप्रीम कोर्ट के द्वारा गठित जांच समिति ने भी उन्हें यौन उत्पीड़न के केस में प्रथम दृष्टया दोषी पाया है, लेकिन उनपर किसी भी तरह की कार्यवायी करने में असमर्थता जताई है। क्या कोई और दोषी होता तो इसी तरह कोर्ट का रूख होता!

संजय दत्त और जस्टिस गांगुली प्रकरण ने इस देश की न्याय प्रणाली पर एक बार फिर से उंगली उठा दी है।

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