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हूं! एतने काम है त (दिन भर इतना ही काम है तो, क्या करेंगे?)

http://information2media.blogspot.in/2012/04/blog-
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हरेश कुमार

आए दिन सभी लोगों को इस तरह के शब्द अपने परिवार में सुनने को मिलता रहता है। इसमें कोई नई बात नहीं है। होनी भी नहीं चाहिए। लेकिन हर परिवार में कहने का अंदाज अलग होता है। परिस्थिति अलग होती है। कभी पत्नी (हाउसवाइफ, कामकाजी औरतें नहीं) कहेगी कि खाली दिन भर बैठकर समाचारपत्र पढ़ते या टीवी देखते हैं तो कभी कहेगी कि दिन भर कोई काम नहीं खाली सोते रहते हैं।। या… ऐसे ही कुछ.. नित… नए अनुभवों से .. हर किसी को ..दो..चार होना पड़ता है।

कई बार, पत्नी अगर पति से गुस्से में हो तो वो अपनी खींझ उतारने के लिए कभी बच्चों पर बरसती है तो कभी अपने पड़ोसन पर गुस्सा उतारती है, लेकिन अगर पड़ोसन उस पर भारी हो तो अपना गुस्सा उतारने के लिए वह बहाने ढ़ूंढ़ते रहती है। इस बीच, अगर भूलवश पति ने खाना मांग लिया तो उसकी खैर नहीं। मेरा सर खा लो… से लेकर पता नहीं, वो क्या-क्या बक सकती है। तो ऐसे मौके पर जरा सावधान ही रहें। विशेषकर परिवार की शांति की खातिर।

अगर, आपको फूलगोभी के साथ मटर या आलू-पनीर की सब्जी पसंद है तो आपको बैंगन का भर्ता मिलेगा। चाहे आप इसे खाना पसंद करते हैं या नहीं, लेकिन आपको अभी मौके की नजाकत को भांपते हुए चुपचाप से खाना पड़ेगा।

वैसे भी आजकल जमाना आपकी बात सुनने से रहा। औरतों का जमाना है। आप पर औरतों को प्रताड़ित करने का आरोप लग सकता है। आपको सजा हो सकती है। समाज भी आपका साथ देने से रहा। जो लोग आपके साथ हमकदम–हमप्याला बने रहते थे। अब वो भी आप पर शक करने लगेंगे। कोई तो बात है। इन्हीं दिनों के लिए पुरानी कहावत है – धुंआ तभी उठता है, जब कहीं आग लगी होती है।

लोग मॉर्निंग वाक के समय आपके बारे में चटखारे लेकर बातें करेंगे – कुछ तो बात होगी, तभी तो आज शर्मा जी उदास चल रहे हैं। शायद, फिर से उनकी पत्नी से मनमुटाव हो गया है। आखिर, शर्मा जी भी करें, तो क्या करें। बेचारे! सहने की भी एक सीमा होती है, कुछ कह दिया होगा, सुनते-सुनते। लेकिन उनकी पत्नी भी कहां कम है। हर बात में जवाब तो जैसे उनके जुबान पर ही होता है। एक बात कहो नहीं कि पूरा खानदान लपेटे में ले लेती है। सारा उदाहरण दे देती है कि मेरे मायके में तो ऐसा होता था। वहां मेरी मां का राज चलता है। किसी की हिम्मत जो उनसे कुछ कहे। अब बात कुछ, वो ले जायें कहीं और!

इस तरह हर समय ताने देना एक दिनचर्या की तरह हो गया है। लेकिन शर्मा जी बड़े ही नेकदिल इंसान हैं और हों भी क्यों ना? जमाने भर के अनुभवों से कम ही समय में गुजर चुके हैं। सो, किसी बात का जवाब नहीं देते। बस चुपचाप सब बातें सुनकर भी अनसुना कर देते हैं। और जिंदगी के मजे लेते हैं। इसमें भी एक अनोखा प्यार है। ये तो वही जान पाता है, जो इस दौर से गुजर रहा हो या गुजरा हो…………

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