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हरेश कुमार
सयानों के समझाने से,
मेरा दर्द कम तो नहीं हो जाता ना?
पर,
फिर भी मैंने कहां हार मानी कभी।
चलता रहा, चलता रहा,
जिंदगी के पथ पर अटल,
अविचल किसी के सहारे का इंतजार कहां किया।
उस समय तो तुमने,
मुझसे नहीं पूछा कि मैं तेरा दर्द बांट लेती हूं।
मुझ पर भरोसा करो। आखिर, मैं तेरी जीवन-संगिनी हूं।
लेकिन मैंने इसका भी कभी बुरा नहीं माना।
क्यों, क्योंकि अकेले चलते रहना
मेरी फितरत में शुमार था।
वो पुरानी कहावत है ना।
तुमने सुनी होगी।।
मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल
लोग आते गए और कारवां बनता गया।
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