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शौचालय और देवालय की तुलना!

http://information2media.blogspot.in/2012/04/blog-
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हरेश कुमार

पिछले दिनों, गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा की ओर से पीएम पद के घोषित उम्मीदवार, नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में देवालय से पहले शौचालय क्या कहा, बस सारे राजनीतिक विरोधी यहां तक कि उनके ही कुछ कट्टर समर्थक भी उनसे सवाल-जवाब करने लगे।

खैर, यहां पर हम किसी राजनीतिक बहस में नहीं पड़ना चाहते हैं और हमारा मकसद यह है भी नहीं कि उनसे पहले किस राजनेता ने क्या कहा औऱ तब क्या-क्या विवाद उठे। हम तो बस शौचालय और देवालय की महत्ता को रेखांकित करना चाहते हैं।

सुबह-सुबह हर किसी को शौचालय की जरूरत पड़ती है और अगर शौचालय ना हो तो खुले में शौच जाना पड़ता है, क्योंकि आप इस पर नियंत्रण नहीं कर सकते हैं, और ऐसा करने का सीधी अर्थ है कि आप कई सारी बीमारियों को निमंत्रण दे रहे हैं। इसके लिए जरूरी है कि हर घर में एक शौचालय जरूर हो और अगर यह किसी कारणवश (संभावित आर्थिक) संभव नहीं हो तो सामुदायिक प्रयासों से एक ऐसा शौचालय बनाया जाना चाहिए, जो हर किसी की जरूरत को बिना किसी भेदभाव के पूरा कर सके।

यह कितने दुख की बात है कि आजादी के 66 सालों के बाद हम अपने सामुदायिक प्रयासों से या सरकारी की प्रशासनिक कमजोरी जो कहें, महानगरों में भी सभी को शौचालय जैसी मूलभूत सुविधा मुहैया नहीं करा सके हैं, दूसरी मूलभूत सुविधाओं की बात करना तो बेमानी है। महानगरों में, अगर आप अविकसित क्षेत्रों में जायें तो पायेंगें कि खुले में शौच करना लोगों की दिनचर्या का एक अहम हिस्सा है, क्योंकि उनके पास इतना पैसा नहीं होता है कि वे अपने लिए एक अदद शौचालय का निर्माण कर सकें। इस महंगाई के जमाने में अपने परिवार का भरण-पोषण कर लें, यही उनके लिए भारी है।

उदाहरण के तौर पर, महानगरों की ही बात करें तो लोगों से भारी-भरकम टैक्स लेने वाला नगर निगम भी इतना लाचार होता है कि वह बड़े-बड़े मार्केट में आज तक शौचालय की ठीक से व्यवस्था नहीं पाया है औऱ अगर, कहीं है भी तो उसके रखरखाव की व्यवस्था सही तरीके से नहीं है।

अगर, महिलायें बाजार में एक-डेढ़ घंटे कि लिए निकल गईं और ऐसे में उन्हें शौचालय जाने की जरूरत महसूस हो तो भारी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है। इसका कारण लिखने की जरूरत नहीं है। पुरुष तो कहीं भी अपनी सुविधा देखकर मूत्र जरूरत पड़े तो शौच त्याग कर लेते हैं। ऐसे में, महिलाओं के सामने यही एकमात्र रास्ता बचता है कि या तो वे नजदीक में अपने किसी पारिवारिक मित्र के घर जायें या फिर काम को बीच में रोककर अपने घर लौटना बेहतर है। बड़ी विकट समस्या है, लेकिन इस पर अभी तक किसी राजनीतिक या दल का ध्यान नहीं गया है, जबकि भारत में महिलाओं के वोट पाने के लिए (जनसंख्या का आधा हिस्सा) राजनीतिक दल और उसके नेता हर तिकड़म करते हैं। क्या यही भारत का विकास है………..? जब महानगरों में ही सही से शौचालय की सुविधा नहीं है, तो फिर गांव-देहात की बात कहां से आती है! इसके लिए, सारे राजनीतिक दल औऱ उसके नेता दोषी हैं।

अब आते हैं, देवालय पर

देवालय, यानि जहां देवों का निवास होता है। भारत में प्राचीन काल से, देवालयों का अतिशय महत्व है और संविधान के अनुसार, यहां निवास करने वाले विभिन्न धर्म और संप्रदाय के लोगों को अपने-अपने आराध्य देव के मंदिर का निर्माण करने और पूजन करने की छूट है।

पूजा-पाठ से मानसिक शांति मिलती है और आज के व्यस्त जिंदगी में अगर आप दो मिनट भी इस काम में देते हैं तो आप दिन भर अपने काम को सही तरीके से और शांत भाव से कर पाते हैं, लेकिन उसके लिए सबसे जरूरी है वह है बिना किसी दिखावा और किसी के बहकावे में आए अपने को अराध्य देव को समर्पित करना ना कि किसी दिखावे के या आपके पास धन-दौलत है तो उसका निर्लज्ज प्रदर्शन कर रहे हैं। अगर, आपके पास धन-दौलत है तो गरीबों के कल्याण के लिए आप सामुदायिक भवनों के निर्माण सहित रोजगार के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं।

आज के समय में, कई ऐसे पाखंडी संत-महात्मा हो गए हैं, जिनके कारण संबधित धर्म और उनके अनुयायियों को काफी ठेस पहुंची है। आए दिन ऐसे खुलासे होते रहते हैं।

खैर, अपनी-अपनी श्रद्धा और अपना-अपना विश्वास है और इस पर किसी को ऐतराज नहीं होना चाहिए। चाहे आप किसी मंदिर यानि देवालय में पूजा करें या अपने घर के किसी कोने में।

मनुष्य के मानसिक और आध्यात्मिक शांति के लिए देवालय की अत्यंत जरूरत है। वैसे मानना ना मानना आप पर निर्भर है!

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