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देश विरोधी ताकतों की साजिश!

http://information2media.blogspot.in/2012/04/blog-
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ईद की नमाज के बाद से किश्तवार में फैली हिंसा अब तक रुकी नहीं है और अब इसकी चपेट में पूरा जम्मू-कश्मीर आ चुका है। जम्मू के आठ जिलों में कर्फ्यू लग गए हैं और राज्य सरकार स्थिति को नियंत्रित करने में पूरी तरह से नाकाम रही है।

राज्य के मुख्यमंत्री, उमर अब्दुल्ला ने अपनी नाकामी से लोगों का ध्यान हटाने के लिए किश्तवाड़ के दंगों की तुलना गुजरात में 2000 में हुए गोधरा के दंगों से कर दी। उन्होंने कहा कि गुजरात में हुए दंगे के बाद राज्य सरकार ने क्या किया था। उल्टे प्रश्न करते हुए अब्दुल्ला ने कहा कि क्या तब वहां के गृह राज्य मंत्री या गृहमंत्री ने इस्तीफा दिया था या इसकी जिम्मेदारी ली थी।

दूसरी तरफ, राज्यसभा में पी.चिदंबरम ने राज्य सरकार को किश्तवाड़ में हुए दंगे से सही तरीके से नहीं निपटने के लिए आड़े हाथों लिया और सदन को यह आश्वस्त किया कि राज्य में 90 के दशक जैसा हालात बनने नहीं दिया जाएगा। अमरनाथ यात्रा का विरोध सहित आतंकी दोनों समुदायों के बीच वैमनस्य फैलाने का एक भी मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहता है। और हाल का यह दंगा ऐसे समय में फैला है, जब पाकिस्तान की सेना ने सीजफायर का उल्लंघन करते हुए हमारे पांच सैनिकों की हत्या कर दी। अभी लोग पाकिस्तानी सैनिकों की इस कायराना से उबरे भी ना थे कि फिर दो दिन बाद ही गोलीबारी में एक और सैनिक की जान पाकिस्तानी सैनिकों ने ले ली। और तब से सीमा पर लगातार सीजफायर का उल्लंघन पाकिस्तानी सेना की ओर से किया जा रहा है। ऐसे में, सवाल यह उठता है कि इस तरह के माहौल में क्या पाकिस्तान के साथ किसी तरह की बातचीत संभव हो सकती है? इसका सीदा और सरल सा जवाब है – नहीं………..।

जम्मू-कश्मीर में पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों की नाकामी के बाद वहां सेना को तैनात किया गया है और अब जाकर स्थिति थोड़ी शांत हुई है। क्या इसके पीछे साजिश की बू नहीं आ रही है। एक तरफ, पाकिस्तान के सैनिकों के तरफ से सीजफायर का उल्लंघन, आतंकियों की बढ़ती घुसपैठ की आशंका, राज्य में अमन-चैन के माहौल में जहर घोलना, वहां तेजी से पटरी पर लौट रहे पर्यटन व्यवसाय को इससे हुए नुकसान की भरपाई में काफी वक्त लगेगा।

अगर, पूरी घटनाक्रम का बारीकी से विश्लेषण करें तो दाल में काला ही नहीं बल्कि पूरी दाल ही काली नजर आएगी। चुनावी साल को देखते हुए सभी राजनीतिक दल एक-दूसरे के खिलाफ विषवमन कर रहे हैं और ऐसे में वहां के निवासियों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा और पड़ भी रहा है। अमन के दुश्मन नहीं चाहते कि कभी भी इस राज्य में शांति का माहौल पैदा हो, उनके लिए तो यह बात काफी है कि वहां का माहौल हर समय गरमाया रहे। और एक समुदाय के लोग दूसरे के खिलाफ हमेशा बंदूकें ताने रहें और ये मजे लेते रहें।

इस पूरे प्रकरण में दुखद पक्ष यह है कि किश्तवाड़ में जम्मू-कश्मीर के गृहराज्य मंत्री, सज्जाद किजलू की बंदूकों की दुकान है और वहां पर दंगाइयों ने कथित तौर पर लूट-पाट का नाम देकर दुकान से बंदूके लेकर जमकर दूसरे समुदाय के लोगों को अपना निशाना बनाया और इसका दुखद पक्ष यह था कि यह सब गृह राज्य मंत्री, किचलू की मौजूदगी में हुआ। गौरतलब है कि वे वहीं से नेशनल कांफ्रेंस पार्टी के विधायक भी हैं। इसके पीछे देश विरोधी तत्वों की साजिश तो है ही, इससे कोई इनकार नहीं किया जा सकता।

दंगो की आड़ लेकर वहां की सरकार ग्राम सुरक्षा समितियों को मिले हथियार वापस लेना चाहते हैं। जबकि इन्हीं हथियारों की बदौलत वे आतंकियों से मुकाबला करने में सक्षम हुए हैं। लगता है एक बार फिर से पाकिस्तानपरस्त ताकतें 1989 का माहौल पैदा करना चाहती है जब घाटी से हिंदुओं को खदेड़ दिया गया था और आजतक उनके बसाने के लिए कोई उपाय ना तो राज्य सरकार की तरफ से किया गया और ना ही केंद्र सरकार की ओर से। पूरे देशवासियों को इसका खुलकर विरोध करना चाहिए जिससे कि इस तरह की ताकतों को खुलकर खेलने का मौका ना मिले कभी।

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