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पाकिस्तान और चीन की हिमाकत

http://information2media.blogspot.in/2012/04/blog-
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हरेश कुमार

पाकिस्तान सरकार और वहां की गुप्तचर एजेंसियां आए दिन कुछ ना कुछ ऐसा करती रहती है जिससे कि उसके खिलाफ भारत में विरोध का माहौल बने औऱ उसे अपने देश में इसका लाभ मिल सके। अभी पाकिस्तान में आम चुनाव चुनाव का माहौल है, इसके कारण वहां भारत विरोधी भावनाओं को भुनाकर विभिन्न पार्टियां सत्ता प्राप्त करना आसान समझती है। जबसे संसद पर हमले के आरोपी अफजल गुरू और मुंबई पर आतंकी हमले के एकमात्र जिंदा आरोपी, आमिर अफजल कसाब को फांसी दी गई तब से वह बौखलाया हुआ है।

पाकिस्तान आए दिन भारत की सीमा पर आतंकवादियों की घुसपैठ तो कराता ही है, सीमा पर गोलीबारी के साथ-साथ पाकिस्तान की सेना ने हाल ही में आतंकवादियों की मदद से दो भारतीय सैनिकों का सर भी कलम कर दिया। इस कदम की जितनी भी निंदा की जाए कम है, देश भर में इसके खिलाफ आम जनता में भारी रोष व्याप्त है, लेकिन पाकिस्तान को इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है।

अपने निर्माण के समय से ही वह ऐसी हरकतों को अंजाम देता रहा है। उसकी नापाक नज़र भारत के जम्मू-कश्मीर क्षेत्र पर है और इसके एक-तिहाई क्षेत्र पर तो उसने अवैध तरीके से कब्जा भी जमा लिया है, जिसमें से कुछ हिस्सा उसने अपने मित्र चीन को दे दिया है और चीन की सेना वहां पर अपने लिए सैनिक अड्डा तक बना चुकी है जो कि निहायत ही गलत है। एक विवादित भूमि पर, जिस पर उस देश का खुद का स्वामित्व अभी साबित नहीं हुआ हो वह किसी दूसरे देश को कैसे दे सकता है, लेकिन पाकिस्तान को इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। उसके लिए ना तो कोई अंतरराष्ट्रीय संस्ता मायने रखती है और ना किसी का लिहाज। बस कठमुल्लों और अपने आकाओं को खुश करना पाकिस्तानी सत्ता को भाता है। बदले में चीन पाकिस्तान को आर्थिक मदद के साथ-साथ सैन्य मदद भी मुहैया कराता है। इन्हीं सबको देखते हुए पाकिस्तान अमेरिकी पाबंदियों की गीदड़ भभकी का भी परवाह नहीं करता है क्योंकि उसकी पीट पर चीन का हाथ जो है।

अभी पाकिस्तान की कोट लखपत जेल में 23 सालों से कैद भारतीय कैदी सरबजीत सिंह पर वहां के दो कैदियों ने जानलेवा हमला करके मार दिया। इस साजिश में वहां की गुप्तचर एजेंसियों से लेकर सत्ताधारी पार्टियों के रहनुमा भी शामिल रहे हैं। इससे पहले भी पाकिस्तान की जेलों में कई निर्दोष भारतीय नागरिकों की हत्या इस तरह से कर दी गई है, लेकिन भारत के नेताओं ने कभी भी इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जोरदार तरीके से नहीं उठाया और ना ही पाकिस्तान पर बातचीत से पहल कोई दबाव बनाया।

बिडंबना या साजिश कहिए कि दिखावा करने के लिए पाकिस्तान ने सरबजीत के परिवार वालों को 15 दिनों का वीजा दिया और दूसरी तरफ भारतीय काउंसलर तक को सरबजीत से मिलने की अनुमति नहीं दी गई थी। इसी से सब कुछ सीशे की तरह साफ हो जाता है, कि पाकिस्तान की मंशा क्या थी औऱ वह किस तरह से सच्चाई को छुपाना चाहता था। अगर, उसकी हालत अच्छी नहीं थी तो उसे इलाज के लिए बारत या ब्रिटेन भेजा जा सकता था, लेकिन वह तो पहले ही ब्रेन डेड का शिकार हो गया था तो दिखावा करने के लिए परिवार जनों को वीजा देने की नौटंकी की गई।

लेकिन इस मुद्दे पर सभी दल सिर्फ राजनीति कर रहे हैं। अगले साल भारत में भी आम चुनाव होने वाले हैं और इसके अलावा इस साल कई राज्यों में विधानसभा के चुनाव भी होने वाले हैं। इस मुद्दे पर राजनीतिक दल रोटियां सेंकने से बाज नहीं आने वाले हैं।

आज सरबजीत की हत्या के बाद जो दल हो-हल्ला मचा रहे हैं, वे दल और नेता तब कहां थे जब सरबजीत का परिवार उसकी जान पर खतरा बता रहा था और यह खतरा अफजल गुरू को फांसी दिए जाने के बाद से बढ़ गया था, लेकिन भारत सरकार और विपक्ष ने इस मुद्दे को कभी भी सही तरीके से नहीं लिया। इससे पहले भी 2008 में चमेल सिंह को इसी तरह से यातना देकर मारा गया था जिसकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट अभी तक भारत सरकार को नहीं मिली है और उसके बाद भारत की सरकार के कई प्रतिनिधि अपने पाकिस्तानी समकक्षों से मिल चुके हैं, लेकिन मुद्दा जस का तस है।

इससे पहले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी लाहौर की यात्रा पर गए थे, तो भी इस मुद्दे का हल नहीं निकाला जा सका था या दूसरे शब्दों में यूं कहिए कि वे सरबजीत और अन्य निर्दोष कैदियों को पाकिस्तान की जेल से छुड़ाकर भारत नहीं ला पाए थे, जबकि वाजपेयी ऐसा कर सकते थे।

कारगिल में पराजय के बाद आगरा शखर वार्ता के कारण ही परवेज मुशर्रफ की ससरकार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिल सकी थी, क्योंकि तब तक पाकिस्तान की मुशर्रफ सरकार को मात्र सउदी अरब ने मान्यता दे रखी थी, लेकिन मुशर्रफ, भारत सरकार से मान्यता मिलने के बाद फुर्र हो गए और फिर से हर मंच पर वही राग अपनाने लगे।

खैर, भारत के राजनेताओं और राजनीतिक दलों की सोच पर देशवासियों को दया आती है। इनकी सोच और कार्यप्रणाली के कारण हमारे देश की प्रतिष्ठा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कमजोर हुई है। कोई भी देश भारत को गंभीरता से नहीं लेता। हालांकि सेना सीमाओं की सुरक्षा में मुस्तैद है लेकिन उसे जरूरी उपकरण मुहैया कराने में हमारी सरकार हीला-हवाली करती रही है। अभी हाल के दिनों में ही पूर्व सेनाध्यक्ष ने चीन की हरकतों को भांपते हुए सीमा पर सुरक्षा के लिए लगभग 50 हजार करोड़ रुपये की जरूरत बताई थी, जिसे वित्त मंत्रालय ने रद्दी की टोकरी में फेंक दिया था। पिछले 15 अप्रैल से चीन की सेना लद्धाख के डीओबी सेक्टर में 19 किलोमीटर अंदर तक घुसी हुई है और उसने 5 अस्थाई टेंट गाड़ दिया है। इसके अलावा चीन ने वहां एक बोर्ड भी लगा दिया है – चीन की सीमा में आपका स्वागत है। चीन की वायुसेना ने भी हमारी सीमा का दो बार उल्लंघन किया।

अगर, कोई दूसरा देश होता तो वहां की सरकार इसके लिए तुरंत कदम उठाती लेकिन ये तो हमारी भारत सरकार है, कोई देश हमारी सीमा का अतिक्रमण करे, उसे छूट प्राप्त है। यहां के नेताओं को सिर्फ अपने वोट बैंक से मतलब है। वे सिर्फ देश की संपदा को लूटने के लिए पैदा हुए हैं. जबकि एक समय ऐसा भी था कि इसी देश की संसद में इस मुद्दे को लेकर काफी हो-हल्ला मचा था।

समय-समय की बात है – 1962 में जब चीन के द्वारा भारतीय भूमि के अतिक्रमण की बात आई थी तो तब के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संसद में कहा था कि जिस भूभाग की चर्चा की जा रही है वहां घास का एक तिनका भी नहीं उगता। उसी बहस में कांग्रेस के महावीर त्यागी ने कहा था कि मेरे सर पर एक भी बाल नहीं है तो क्या आप मेरा सर काट लोगे? हमारा संसदीय लोकतंत्र इस तरह की बहसों का गवाह रहा है लेकिन इतने दिनों के बाद भी हम अपनी रक्षा जरूरतों को क्यों पूरा नहीं कर पायें हैं। क्यों हमें चीन कमजोर समझता है, जबकि चीन के 14 पड़ोसी देशों के साथ सीमा-विवाद है और उसने सोवियत रूस के साथ सीमा विवाद को विघटन के बाद 2004 औऱ 2008 में वार्ता करके हल कर लिया वहीं पर भारत के साथ वह ऐसा क्यों नहीं करता क्योंकि वह भारत को कमजोर समझता है और इसके जिम्मेदार हमारे नीति-निर्धारक और नेतागण हैं दूसरा कोई नहीं। उन्हें बस कमीशन औऱ भ्रष्टाचार पोषण से मतलब है, देश की जमीन को भले ही पड़ोसी हड़प ले जाए या आतंकवादी हरकतें होती रहे उसकी बला से।

हद देखो कि भारत के लोग भगवान शंकर को देवाधिदेव कहते हैं और उनका निवास स्थान कैलाश मानसरोवर चीन के आधिपत्य (तिब्बत) में है। कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए चीन से इजाजत लेनी होती है? फिर भी भारत सरकार को शर्म नहीं आती। यह वही तिब्बत है जिसके अंदर तक 200 मील का हिस्सा भारत सरकार को 1962 तक राजस्व देता था और संसद में डॉक्टर लोहिया ने एक बहस में इसे राजस्व विभाग के दस्तावेजों के द्वारा साबित भी किया था।

क्या मौजूदा भारत सरकार और विपक्ष से देश यह उम्मीद कर सकता है कि वे राजनीति लाभ-हानि छोड़कर देशहित में कुछ काम कर सकेंगे। वैसे ही देश के नेताओं के प्रति आम जनता में गलत धारणा बनती जा रही है। देश के नेताओं के प्रति जनता में दिनों-दिन गुस्सा बढ़ता ही जा रहा है।

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