Menu
blogid : 10952 postid : 191

हां, मैंने देखा है!

http://information2media.blogspot.in/2012/04/blog-
http://information2media.blogspot.in/2012/04/blog-
  • 168 Posts
  • 108 Comments

हरेश कुमार

हां, मैंने देखा है!

अपने आस-पास,

बड़े-बड़े महलों में रहने वालों को,

बड़ी-बड़ी कंपनियों में काम करने वालों को,

बड़ी-बड़ी बातें करने वालों को,

पैसे तो बहुत आ गए हैं, येन-केन-प्रकारेण,

लेकिन घर के सदस्यों के साथ,

बात करने के लिए समय नहीं है।

बच्चों की जिज्ञासा जानने के लिए समय नहीं है।

पति-पत्नी में कहीं कोई संबंध नाम की चीज नहीं रह गई है।

सामाजिक बंधनों के तहत भले ही,

वे एक-दूसरे से बंधे हों।

लेकिन अब वे अपने संबंधों को सिर्फ ठो रहे हैं।

क्योंकि, अब उनके पास इतना समय तक नहीं कि

एक-दूसरे से बात कर सकें।

एक-दूसरे की इच्छाओं का सम्मान कर सकें।

क्यों, क्योंकि पैसे की बढ़ती भूख ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा।

दिन-रात पैसे कमाने की चिंता में लगे रहते हैं।

बच्चे क्या कर रहे हैं, इसे जानने की जरूर ही नहीं।

अरे, बच्चों के लिए आया को रख छोड़ा है ना?

अब आया के भरोसे बच्चे पल रहे हैं।

तो देश के ये होनहार,

कल के भविष्य।

अपना कैसा भविष्य बनायेंगे, ये तो वही जानें।

हां, मैं तो इतना जानता हूं कि बच्चे,

अब जरा-जरा सी बात पर चिढ़ जाते हैं।

अब वे एक-दूसरे का सम्मान नहीं करते।

उन्हें पता ही नहीं है कि

दादा-दादी क्या चीज होती है,

नाना-नानी का प्यार कैसा होता है,

चाचा-चाची किसे कहते हैं,

सामाजिक संस्कार व बंधन क्या होते हैं?

खैर, इसमें उनका कोई दोष नहीं।

जब उन्हें यह सब बताया ही नहीं गया तो वे कैसे जानेंगे?

तभी तो छोटी-छोटी बातों पर लोग एक-दूसरे की जान लेने पर उतारू हो रहे हैं।

घर में ही छोटी-छोटी मासूम बच्चियों की अस्मत से खिलवाड़ हो रहा है।

जिसके भरोसे बच्चों को छोड़ा जा रहा है, वही इसे दागदार कर रहे हैं।

पर शिकायत किससे करें, कौन है गुनाहगार?

क्या हम इन परिस्थितियों के खुद जिम्मेदार नहीं है।

संयुक्त परिवार से एकल परिवार बनने को भले ही हम वक्त की मजबूरी का नाम दें।

कृषि से औद्योगिकीकरण के कारण हुई परिवर्तनों का प्रभाव कहें,

लेकिन परिवारों पर इसका गहरा असर पड़ा है।

इससे भला किसको इंकार है।

अब राह चलते किसी बिटिया की इज्जत तार-तार हो जाती है।

और मुसाफिर की तरह सब देखते रह जाते हैं।

अपनी राह चले जाते हैं।

कौन मुसीबत मोल ले।

क्योंकि अब किसी को किसी की परवाह कहां।

सबको अपनी परवाह है,

यही कारण है कि पड़ोसियों के घर में कुछ घट जाता है,

और हमें पता तक नहीं चलता।

फिर हमारी बारी आती है तो पड़ोसी अपने घर का दरवाजा बंद कर लेते हैं।

इसका जिम्मेदार कौन हैं?

जरा ठहरकर सोचिए, फिर से।

गंभीरता से सोचने की जरूरत है।

वरना, ऐसा ना हो कि फिर सोचने को कुछ ना रह जाएगा।।

वैसे भी सब कुछ गवां के होश में आए तो क्या किया।।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply