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हरेश कुमार
देश की पुकार है ये
बचाओ बेटियां।
गर्भ से लेकर, हर जगह
क्यों मारी जाती हैं बेटियां।
हैं, बेटियां पुकारती।
क्यों हो रहा ये अत्याचार।
है कह रही ये बेटियां,
क्यों नहीं हैं, उनको भी जीने का अधिकार?
क्यों घर में मां-पिताजी और दादा-दादी
भैया की हर बात मानते है,
उसके रूठने पर मनाते हैं।
और मेरे कुछ मांगने पर मिलती है,
तो सिर्फ डांट।
मां तुम तो मेरी जननी हो,
फिर ये कैसा अत्याचार?
तुम्हारी नज़र में तो सब बराबर होना चाहिए।
लेकिन नहीं। ये क्या?
तुम में और नेताओं में कोई फर्क नहीं?
जो कहते कुछ और हैं और करते कुछ और हैं।
क्यों मैं नहीं सुरक्षित कहीं?
चाहे वह घर हो या स्कूल या बाजार हो या ऑफिस या कहीं और।
क्यों सबकी गंदी नज़रें मुझी पर टिकी होती हैं?
क्यों सबकी घृणित
और दमित वासनाओं का मैं ही बनती शिकार?
जब इस तरह से तुम ही मुझे कोख में मारोगी।
फिर, तुम्ही बताओ कि भैया कि कलाई पर कौन बांधेगा राखी।
तुम्हारे घर में बहू कहां से आएगी।
जब बच्चियों को पैदा होते ही मार दोगे तुम।
या कहीं बच्चियों पर हो रहे अत्याचार पर,
आंखें मूंद कर आगे बढ़ जायगा तुम या तुम्हारा समाज।
गर, हमें भी भाई की तरह सब सुख-सुविधायें मिले तो
हम भी शिक्षित होकर,
समाज में आगे बढ़ सकती हैं।
हम भी कल्पना चावला से लेकर साइना नेहवाल
और इंदिरा बन सकती हैं……………।
हम भी लेखक, वैज्ञानिक, डॉक्टर से लेकर,
जीवन के हर क्षेत्र में झंडे गाड़ सकती हैं।
फिर, क्यों ये भेदभाव?
क्यों नहीं तुम करती प्रतिकार।
क्यों चुप हो जाती हो,
ये सोचकर, कि कोई तुम्हारा साथ नहीं देने वाला।
आगे बढ़ो तो सही।
नारी जो सहनशीलता की मूर्ति होती है।
जरूरत पड़ने पर दुर्गा भी बनती है,
वह काली भी बन सकती है।
और समाज के राक्षसों का संहार भी कर सकती हैं।
फिर भी इतने अत्याचारों के बावजूद, तुम चुप हो।
और दिन-प्रतिदिन, यह बढ़ता ही जा रहा है।
किसी को नहीं कानून और समाज का भय।
इससे पहले कि यह घाव नासूर बन जायें।
कैंसर बनने से पहले इन्हें जड़ से समूल नाश कर दो।
नारी को श्रद्धा और विश्वास की प्रतिमूर्ति कहकर,
अपने गंदे आचरणों से,
कलंकित करने वालों का संहार कर दो।
वरना, वो दिन दूर नहीं जब घरों में,
किलकारियां नहीं गूंजेंगी।
जब गांव-गांव बिना शहनाई के सूने हो जायेंगे।
किसी औरत की गोद नहीं भरेगी।
किसी भाई की कलाई बिना राखी के सूनी रह जाएगी।
क्या तुम ऐसा चाहोगी?
नहीं, कतई नहीं। तो फिर जागो।
और, मुझे मेरा हक दिलाने में,
मदद करो।
मैं भी तो तेरी संतान हूं।
क्या मुझे जन्म देते समय,
तुम्हें उतना ही कष्ट नहीं हुआ जितना कि
मेरे भाई को जन्म देते समय हुआ था।
फिर ये भेदभाव क्यों?
सोचो, एकबार सोचो?
अब बर्दाश्त नहीं होता, ये सब।
बहुत हो चुका। वरना
सृष्टि का अंत होते देर नहीं लगेगी।
और तुम भी इस आग में जल जाओगी।
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