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बर्बरतापूर्ण औऱ अमानवीय कार्यवायी पर तो राजनीति बंद करो?

http://information2media.blogspot.in/2012/04/blog-
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हरेश कुमार

पाकिस्तानियों के इस बर्बर और अमानवीय कार्यवायी की एक सुर में सारा देश निंदा करता है और देश की पुकार है कि इसका बदला हमें लेना चाहिए। जैसा कि भारत के सेना प्रमुख, जनरल विक्रम सिंह ने कहा है कि अगर पाकिस्तानी सेना इसी तरह की कोई कार्यवायी दोबारा से करती है तो हम तत्काल प्रभाव से इसका जवाब देंगे। सेना के मनोबल को बनाए रखने के लिए यह जरूरी भी है। आज सेना दिवस के अवसर पर देश के लिए अपने प्राणों की बलिदानी देने वाले सभी सैनिकों को हम नमन करते हैं और वर्तमान में कार्य कर रहे सैनिकों के लिए प्रार्थना करते हैं, कि वे हमारे देश की सीमा पर रहकर जिस तरह से हमारी रक्षा करते हैं, हम उसी तरह से उनके परिवार और अन्य जिम्मेदारियों का ख्याल करेंगे।

हमें तो दुख तब होता है कि वोटों के सौदागर इस अमानवीय और बर्बर कृत्य के अवसर पर भी अपनी राजनीति करने से बाज नहीं आते हैं।

वोटों के सौदागर कब समझेंगे/सुधरेंगे? इस देश में पक्ष-विपक्ष के सारे नेता एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। जब पार्टियों को लगता है कि जनता का आक्रोश है और वह इस मुद्दे को भुना सकती है तो ऐसे मौकों को पार्टियां अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहती। बस उसे ऐसे ही मौकों की तलाश रहती है। भ्रष्टाचार और दिल्ली एवं देश में गैंगरेप के खिलाफ पूरे देश में एक आंधी चल रही थी। और देश इस तरह के अपराधों के खिलाफ एकसुर में अपनी आवाज बुलंद कर रहा था, तभी पाकिस्तानी आतंकियों ने अपनी चालें चलते हुए देश की दिशा एवं दशा को एक अलग मोड़ दे दिया। कुछ दिनों पहले जहां समाचार माध्यमों में गैंग रेप का मुद्दा छाया था, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, सोशल मीडिया में गैंग रेप के आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्यवायी करने से लेकर मृत्युदंड के प्रावधान करने की मांग थी, वहीं पाकिस्तानी सैनिकों की इस बर्बरतापूर्ण कार्यवायी ने पूरी धारा ही बदल डाली।

अभी विपक्ष में बैठी पार्टियां जब सत्ता में थी तो भारतीय विमान अपहर्ताओं को कंधार तक छोड़ आई। मुंबई में 26/11 हमले के मास्टरमाइमंड वही हाफिज सईद है जिसे चार कट्टर आतंकियों के साथ एनडीए शासन काल में, इंडियन एयरलाइन्स के 181 यात्रियों की जान बचाने के चक्कर में छोड़ा गया था। और उस समय भी अगर ये चाहते तो जब हैदराबाद में, विमान को ईंधन भरने के लिए उतारा गया था तो कार्यवायी करके आतंकियों को ना सिर्फ मार दिया जाता बल्कि यात्रियों को सुरक्षित बचाने के साथ ही मुंबई सहित अन्य हमलों से भी बचा जा सकता था। इसके अलावा, विदेशों में हमारे देश की सॉफ्ट स्टेट की जो छवि बनी है उससे भी छुटकारा पाया जा सकता था। लेकिन आपने ना सिर्फ यह मौका गवांया बल्कि भारत का नाम देश-दुनिया में मिट्टी में मिला दिया। करगिल के समय भी ऐसी सूचना थी कि पाकिस्तानी घुसपैठिए देश की सीमा के अंदर में सियाचीन की चोटियों पर कब्जा कर चुके हैं और आपने उस समय भी नवाज शरीफ के साथ वार्ता को ध्यान में रखते हुए इसे दरकिनार कर दिया था। मैत्री की बस चलाने की खातिर। करगिल में सेना को अपने 900 जवानों को इसकी कीमत जान देकर चुकानी पड़ी।

हमें एकतरफा प्रेम संबंध बनाने की भी जरूरत नहीं है औऱ ना ही कोई लव लेटर लिखते रहने की। अगर पड़ोसी देश नहीं चाहता कि हम उसके साथ संबंधों को सामान्य बनायें तो हमें क्या पड़ी है। उसे खुद इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा? पड़ोसी देश की नीयत सदा से दुनिया के जन्नत कहे जाने वाले कश्मीर पर नापाक रही है और वह इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने का कोई प्रयास नहीं छोड़ता है। यदा-कदा वह अफगानिस्तान से सटे प्रांत बलूचिस्तान में अशांति के लिए, भारत को ही दोषी ठहराने से बाज नहीं आता है। चाहे कोई भी अंतरराष्ट्रीय मंच हो पाकिस्तानी नेता कश्मीर के मुद्दे का राग अलापना नहीं छोड़ते। जबकि उन्हें भी यह बात अच्छी तरह से पता है कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है औऱ रहेगा। चाहे इसके लिए कितने ही जंग क्यों ना करनी पड़े।

वैसे भी पाकिस्तान के निर्माण के समय से ही फौज का वर्चस्व रहा है और फौज कभी नहीं चाहती है कि पाकिस्तान में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हो जिससे कि उसका महत्व कम हो। अगर पाकिस्तान में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हुई तो फौजियों को मिल रही सुविधाओं से वंचित होना पड़ेगा और उन्हें भी लोकतांत्रिक प्रणाली के अंदर कार्य करना पड़ेगा जिसे कोई भी फौजी नहीं चाहता है और ना ही भविष्य में पाकिस्तान में इस संदर्भ में सुधार की ऐसी कोई उम्मीदें हैं।

अभी हाल में, जम्मू-कश्मीर के मेंढ़र सेक्टर में पाकिस्तानी आतंकियों और नियमित सेना ने मिलकर संयुक्त कार्यवायी करते हुए भारत के दो जवानों का सिर काट दिया और एक जवान का सिर अपने साथ लेता चला गया। इस बर्बरतापूर्ण घटना से पूरे देश में शोक की लहर के साथ आक्रोश है और विपक्षी पार्टियां इस मौके का लाभ लेने के लिए लोगों में और ज्यादा उन्माद फैला रही हैं। लोकसभा में, विपक्ष की नेता, सुषमा स्वराज सहित अन्यों ने कहा है कि हमें इसका बदला लेना चाहिए और भारत सरकार को तत्काल प्रभाव से कार्यवायी करनी चाहिए। हम उनका समर्थन करते हैं। आप दो सर काहे दस सर ले आओ। पाकिस्तानी सैनिकों के, लेकिन अपने कार्यकाल को तो याद करो। यह दोहरा रवैया क्यों? जब आप सत्ता में होते हैं, तो पाकिस्तान के साथ दोस्ती बढ़ाना चाहते हैं। करगिल के बाद भी आपने आगरा वार्ता की और यह सब अमेरिकी दबाव में किया। लेकिन जैसे ही पाकिस्तानी सेनाप्रमुख के शासन को मान्यता मिल गई जो उस समय तक चुने गए प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को हटाकर गद्दी पर बलपूर्वक बैठे थे और सउदी अरब को छोड़कर किसी अन्य देश ने परवेज मुशर्रफ के शासन को मान्यता नहीं दी थी। तब तो आप बहुत जल्दी में थे। बाद में, आप कहने लगे कि पाकिस्तानियों ने धोखा दिया है।

दूसरी तरफ, कई सालों से जम्मू-कश्मीर से सेना को हटाने की मांग करने वाले मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने राज्य में प्रजातंत्र को मजबूत करने वाले सरपंचों की सुरक्षा के प्रति कभी अपनी जिम्मेदारी को नहीं निभाया। खुद वे और उनके मंत्री तो कड़ी सुरक्षा के बीच रहते हैं और सरपंचों को आए दिन पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों के हमले का शिकार होना पड़ता है। कई सरपंचों को इन आतंकवादियों ने जान से मार डाला, लेकिन राज्य-प्रशासन ने कभी इस घटना के खिलाफ आवाज़ नहीं उठायी औऱ ना ही सुरक्षा दिया। क्या इस तरह की घटनाओं से प्रजातंत्र के मजबूत स्तंभ को टिकाया जा सकता है, लंबे समय तक।

पाकिस्तान के नेतृत्व को तो समझ आ चुका है कि भारत से मैत्री करने में ही भलाई है। पिछले 60 वर्षों से ज्यादा समय तक दुश्मनी मोलने और 1947-48,65,71,99 में युद्ध करके आर्थिक तंगी से ही गुजरा है और वह अपनी जनता को जीवन के लिए जरूरी मूलभूत सुविधायें नहीं दे पाया है। भारत का आर्थिक साम्राज्य पाकिस्तान के मुकाबले कई गुणा बड़ा है। भारत युद्ध को झेलने के लिए तैयार है, लेकिन पाकिस्तान की स्थिति अमेरिका और अरब देशों तथा चीन से मिले सहायता पर निर्भर है, (1962 के बाद से ही पाकिस्तान ने अमेरिका का पाला बदलकर चीन का दामन थाम लिया था, वह अमेरिकियों का सिर्फ पैसे लेने के लिए इस्तेमाल करता रहा है वरना दुनिया का मोस्ट वांटेड आतंकवादी पाकिस्तान के ऐबटाबाद सैनिक क्षेत्र में आराम से नहीं रह सकता था)। वहां की सेना कभी नहीं चाहती है कि उसके अधिकरों में कटौती हो औऱ इसी कारण से वह आतंकवादी हरकतें और बर्बरतापूर्ण कार्यवायी को लगातार अंजाम देती रहती है और इस कार्य में पाकिस्तानी आतंकवादी, गुप्तचर संस्थायें, लश्कर-ए-तैयब्बा के हाफिज सईद सहित कई युद्धोन्मादी लोग सहायता करते हैं, जिनकी दुकान इस तरह की हरकतों के कारण ही चलती है वरना अगर दोनों देशों के बीच अमन और भाईचारा कायम हो जाए तो ऐसे कुत्तों को कौन पूछेगा, जो धर्म के नाम पर लोगों को भड़काते रहते हैं और उनकी रोजी-रोटी पर डाका डालकर खुद आराम की जिंदगी जीते हैं

जंग की बात अलापने वाले नेताओं तुम्हें भी यह पता है कि लड़ाई के मैंदान में गरीब का बेटा ही मारा जाएगा। किसी भी नेता या पैसे वाले का लड़का अगर भूले से सेना में हो तो हमें जानकारी नहीं है। सेना में भी अन्य जगह फैले भ्रष्टाचार ने अपनी जड़े गहरें तक जमा ली है और सैनिकों को दिन-प्रतिदिन के उपयोग के लिए दी जाने वाली सामग्री की खरीद में आए दिन भ्रष्टाचार की चर्चा होती रही है। यहां तक कि करगिल के बाद तो ताबूत घोटाला तक हुआ। इसे भी राजनीतिज्ञों ने नहीं छोड़ा। सारे दलों के नेता भ्रष्टाचार में एक जैसे ही हैं। कोई किसी से कम नहीं। सभी दलों के अपने वोट बैंक और अपनी प्राथमिकता है। किसी के लिए भी ऐसा नहीं कि जीत जाने के बाद वह सभी को एकसमान माने। यानि की हर जगह राजनीति। अगर आपके क्षेत्र से किसी विशेष दल या नेता को वोट नहीं मिलता है तो वह इसका बदला लेता है और उस क्षेत्र का विकास एकदम से ठप्प हो जाता है। फिर, विकास तभी रफ्तार पकड़ता है जब आपके नुमाइंदे पहुंचते हैं। चाहें तो रेल को ही उदाहरण के तौर पर ले लें।
जैसा कि सदा से होता आया है, हमारी सेना कभी भी युद्ध में पाकिस्तानियों से सीधी लड़ाई में नहीं हारी है लेकिन कूटनीतिक बातचीत में पाकिस्तानी पलड़ा हमेशा भारी रहा। चाहे वह, आजाद कश्मीर का मामला हो या संयुक्त राष्ट्र में इस मुद्दे को ले जाने का हो। 1965 की लड़ाई में पाकिस्तान के हार के बाद तत्कालीन सोवियत रूस के ताशकंद में समझौते के बाद, प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की मौत (जिस पर उनके पुत्र, सुनील शास्त्री ने जांच की मांग की थी। उनका कहना था कि शास्त्री जी का शरीर जगह-जगह पीला पड़ गया था और यह जहर देने का स्पष्ट संकेत है। संदेह तो तब औऱ बढ़ गया जब इस मामले से पर्दा उठाने वाले उनके निजी चिकित्सक की मौत एक सड़क दुर्घटना में हो गई। शास्त्री जी की मौत से किसे लाभ मिला होगा? भारत सरकार ने आज तक जांच नहीं कराई।)

1971 में हम आधे पाकिस्तान पर कब्जा कर चुके थे लेकिन हमें शिमला समझौते से क्या मिला? उल्टे पाकिस्तान के लगभग 1 लाख सैनिकों को हमें छोड़ना पड़ा और नतीजा बाद में जम्मू-कश्मीर में फिर से एक बार आतंकवाद का नया दौड़। जिसका प्रसार पंजाब में अकाली आतंकवाद और उत्तर-पूर्व के क्षेत्र में अशांति के तौर पर आया। देश को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी। पंजाब में, सिखों के पवित्र धार्मिक स्थल स्वर्ण मंदिर में आतंकी घुस आए और नतीजतन तत्कालीन प्रधानमंत्री, इंदिरा गांधी को सेना को वहां कार्यवायी करने का आदेश देना पड़ा जिसकी भारी कीमत देश ने चुकाई और इंदिरा गांधी की हत्या उनके ही दो सिख अंगरक्षकों ने कर दी। इस कार्यवायी में भी पाकिस्तानी आतंकियों का बहुत बड़ा योगदान था।
मेरा तो यही मानना है कि आप बेशक कार्यवायी करो, लेकिन दोहरा रवैया छोड़ो। चाहे कोई भी दल हो देशहित में एक विदेश नीति बनाए, जिसका सम्मान सभी दल करें। वोट की राजनीति बंद होनी चाहिए। आजादी के 65 सालों के बीत जाने के बाद भी देश में भ्रष्टाचार और कुशासन एवं जात-पांत, प्रांत और धर्म आधारित राजनीति के कारण देश की एक-तिहाई से अधिक जनसंख्या को अभी तक जीवन के लिए जरूरी मूलभूत सुविधायें नहीं मिल सकी है। हम अपने करोड़ों बच्चों को उचित शिक्षा, स्वास्थ्य की सुविधा नहीं दे पाये हैं। ना ही हम अभी तक संपूर्ण भारत को सड़क से जोड़ सके हैं, रेल और विमान की बात तो बाद में आती है। फिर भी हमने काफी कुछ प्रगति की है। आज हम कंप्यूटर सॉफ्टवेयर सहित कई अन्य क्षेत्र में दुनिया में अग्रणी देश हैं। हमारी प्रतिभा का लोहा दुनिया मानती है, लेकिन वहीं भ्रष्ट राजनीतिज्ञों के कारण दुनिया में हम पर हंसा भी जाता है।

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