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हर जगह हावी गंदी राजनीति

http://information2media.blogspot.in/2012/04/blog-
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हरेश कुमार

इस देश में सियासत हर जगह हावी होती जा रही है। चाहे वह खेल का मैदान हो या शिक्षा का क्षेत्र या गांवों के लिए रोजगार बनाने के लिए नीति बनाने की बात हो। राजनीतिज्ञों ने अपनी गंदी सियासत से हर जगह बदबू फैला रखी है। उसे सिर्फ अपनी गद्दी बचाने की फिक्र है, देश की चिंता किसी को नहीं है और इस घटिया और निंदनीय खेल में हर पार्टी समान रूप से शामिल है। बस उसे वोट देते रहिए और आपके हर गुनाहों को वह प्रशासन के साथ गांठ करके दबा देगा।

दुखी हूं कि धर्म के नाम पर लोग ओवैसी जैसे देशद्रोही तत्वों का समर्थन करते हैं और फिर गलत उदाहरण पेश करते हैं। ओवैसी सिर्फ एक देशद्रोही ही नहीं वोट का सौदागर है। उस जैसे लोग चाहते हैं कि मुसलमानों की अशिक्षा, गरीबी बनी रहे ताकि उनकी सियासत चलती रहे। खुद अपने बच्चों को तो महंगे स्कूलों में पढ़ाई करने विदेशों में भेजता हैं, चाहे वह इसाईयों द्वारा संचालित ही क्यों ना हो और अपने यहां गरीबों के बच्चे को मस्जिदों में कुरान और मजहबी बातें गलत तरीके से पेश करते हैं। पेट की आग बुझाने और कुछ हासिल करने के लिए ये बच्चे इनकी पहला शिकार बनते हैं और उन्हीं में से कुछ आगे जाकर इनके नापाक इरादों को परवान चढ़ाने में अपनी कुर्बानी देते हैं। समाज को ऐसे दोगले लोगों से बचने की जरूरत है।

बाबरी मस्जिद कहने वालों को मेरा यही कहना है कि दिमाग से निकाल लो अपने वो भगवान राम का जन्मस्थान था और इस जन्म में क्या अगले किसी भी जन्म में वहां पर अब मस्जिद बनने से रही। उसे तो बाबार के मंत्री मीर बाकि ने ठहाकर मस्जिद का रूप दिया था, जो पुरातत्व सर्वेक्षणों में भी सिद्ध हो चुका है। इसके बाद औरंगजेब ने वाराणसी, मथुरा, काशी में हिन्दुओं के तीर्थस्थल और मंदिरों को तोड़कर उसके बगल में मस्जिद बनाई थी। ज्यादा चूं-चपड़ की तो आगे इन सबकी बारी आने वाली है।

व्यक्तिगत तौर पर मैं किसी भी धर्म या संस्थान के खिलाफ नहीं हूं। सभी को भारत के संविधान के अनुसार रहने खाने-पीने और रोजगार की स्वतंत्रता है। मैं सिर्फ उस दोगली धर्मनिरपेक्ष राजनीति का मुखालफत करता हूं जो वोटबैंक के सापेक्ष भारत के तथाकथित दोगले नेताओं ने बना रखे हैं। जन्म के अनुसार हर कोई एक-समान होता है उसे तो बाद में पता चलता है कि उसका जन्म किस खानदान या धर्म में हुआ है और फिर शुरू होता है, दोगली धर्मनिरपेक्ष नीति।

सभी दलों को मिलकर ऐसे असामाजिक तत्वों को राजनीति से बाहर करने में एक पल की भी देरी नहीं करनी चाहिए नहीं तो देश के टुकड़े-टुकड़े होते देर नहीं लगेगी। जो लोग गोधरा का नाम लेते हैं वे यह क्यों भूल जाते हैं कि निहत्थे कार-सेवकों पर एक सुनियोजित साजिश के तहत हमला हुआ था। अगर ऐसी कोई कोशिश आगे हुई तो ओवैसी जैसे लोगों की संख्या गिनकर 25 भी नहीं रहेगी आजमाकर देख लें।

आप इसलिए बोल पा रहे हो कि दाउद जैसे अपराधियों को इस देश ने अभी तक फन नहीं कुचला।

मौलाना अकबरुद्दीन ओवैसी की पार्टी का गठन ही भारत विरोध के लिए है और यह सदा से भारत औऱ हिन्दूओं के विरोध में कहता रहा है। शायद इसके 7 विधायक हैं और तेलांगना राज्य के अलग होने के बाद से कांग्रेस पार्टी इसके समर्थन से राज्य में सरकार बनाना चाहती है।

इस देश में हर किसी को रहने का अधिकार संविधान ने दिया है लेकिन भारत में रहकर भारतीयों को गाली देना सिर्फ वोट बैंक के कारण ही संभव हो पाता है ना तो वे कब के खत्म कर दिए गए होते। बाबर की इन औलादों को भारत में वैसे भी सब आक्रमणकारी के तौर पर ही देखते हैं। अगर इनका नज़रिया समय रहते ना सुधरा तो भारत के लोग इसे सुधार देंगे और इसमें किसी के साथ देने की जरूरत नहीं है।

अगर यही बात किसी और पार्टी के नेता ने कही होती तो अभी तक देश में बबाल हो गया होता लेकिन कांग्रेस पार्टी के माननीय नेतागण इस पर अपनी खानदानी चुप्पी साधे हुए हैं, जिससे कांग्रेस का आम कार्यकर्ता भी अपने को दुखी महसूस कर रहा है। वोटबैंक के लिए एक खास समुदाय को निशाना बनाना कहां तक उचित है जबकि इस देश में हर आदमी को एकसमान अधिकार है।

आप भूले से अगर एक बार आंध्रप्रदेश के हैदराबाद क्षेत्र चले जायें तो इनकी गुंडागर्दी देख सकते हैं। आए दिन इसकी पार्टी दंगे-फसाद कराती रहती है, जिसकी चर्चा कभी नहीं होती। राष्ट्रीय मीडिया इसे दबा देता है

भूले से भी गर दो असमाजिक तत्व यानि गुंडे आपस में टकरा गए जिनकी कोई औकाद है, गिरगिटों की मैं बात नहीं कर रहा तो उसके बाद जो होता है सभी को इसका हश्र मालूम है। खोप समेत कबूतराय नम: ही आज तक होता आया है। ना हम रहें ना तुम। हम तो डूबेंगे, तुम्हें भी ले डूबेंगे इसी तर्ज पर दोनों समाप्त हो जाता है।

गुंडागर्दी का वसूल है कि ये एक-दूसरे के घरों पर हाथ नहीं डालते। इसी कारण से नेता औऱ गुंडा दोनों इस देश में फल-फूल रहे हैं।

इस देश में ऐसे कुत्तों की कमी नहीं है जो खाते तो भारत का हैं लेकिन गाते पाकिस्तान का है। और आने वाले सालों में कमी होने की कोई आशा भी नहीं है? वोट बैंक प्रजातंत्र और दोगली धर्मनिरपेक्ष राजनीति।

पाकिस्तान की सोच में बदलाव की आशा करना फालतू की बकबास है। पाकिस्तान पर भरोसा करना वैसा ही है जैसा चीन पर भरोसा करके हमने पाया था, जो रह-रह कर टीस देता है और जख्म हरे हो जाते हैं।

मध्य प्रदेश के उद्योग मंत्री और इंदौर शहर के विधायक – कैलाश विजयवर्गीय पहले भी कई विवादित बयान दे चुके हैं। नए विवादित बयान के अनुसार – कोई मर्यादा का उल्लंघन ना करे, नहीं तो परेशानी हो सकती है। हम यह जानना चाहते हैं कि जन-प्रतिनिधियों के लिए भी कोई मर्यादा है या बस आम-नागरिकों के लिए ही है यह?

सच पूछो तो गौतम गंभीर, वीरेंद्र सहवाग जैसे खिलाड़ी जानबूझ कर अभी धोनी का साथ नहीं दे रहे हैं जिससे कि उसकी कप्तानी छीन जाए और इन्हीं में से किसी एक को मिले। यह सिलसिला तभी से है जब धोनी ने इन दोनों को नज़रअंदाज करते हुए विराट कोहली को मौका दिया था। भारतीय क्रिकेट में गंदी राजनीति घुस गई है। कोई यह पहली बार नहीं हो रहा है। पहले भी ऐसा हो चुका है। सुनील गावस्कर ने एक बार कपिलदेव को टीम से बाहर किया तो मौका मिलते ही अगली बार कपिलदेव ने सुनील गावस्कर को टीम से एक दिन के लिए ही सही अलग कर दिया था। हर जगह गंदी राजनीति हावी है। चाहे वह खेल का मैदान हो या राजनीति या शिक्षा या गांव के विकास के लिए किसी कार्यक्रम की घोषणा।

मुंबई आतंकी हमले में 200 से अधिक की जान लेने वाले देश के दुश्मन और पाकिस्तान के सरकारी दामाद दाउद इब्राहिम (कराची में पाकिस्तानी इंटेलीजेंस ब्यूरो की निगरानी में आराम से रह रहे) के समधी, जावेद मियांदाद के बारे में सरकारी स्तर पर गुपचुप तरीके से प्रयास चल रहा है कि वो न आए तो बेहतर है, इतनी बेइज्जती करा दिए। आएगा तो जो रही-सही है, वो भी चली जाएगी। आप खुद ही सोचिए 2005 से ही इसके वीजा पर पाबंदी है। अचानक ऐसा क्या हुआ जो वीजा दे दिया गया।

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