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आखिर अफजल को फांसी क्यों नहीं दी जा रही?

http://information2media.blogspot.in/2012/04/blog-
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हरेश कुमार

लोकतंत्र में संसद को सर्वोच्च माना जाता है, दूसरे शब्दों में इसे लोकतंत्र का मंदिर भी कहा जाता है। आज संसद पर आतंकी हमले की 11वीं वर्षगांठ है। आज से 11 साल पहले 13 दिसंबर, 2001 को पाकिस्तान प्रशिक्षित, जैश-ए, मोहम्म्द के पांच आंतकियों ने संसद भवन पर हमला बोला था। उनका एक ही मकसद था भारतीय संसद पर हमला करके अधिक से अधिक सांसदों को मारना और देश की सुरक्षा-व्यवस्था की पोल दुनिया में खोलना, जिसमें वे बहुत हद तक कामयाब भी रहे थे।

अगर हमारे देश के जांबाज सुरक्षा कर्मियों ने अपने प्राणों की बाजी ना लगाई होती तो ये आंतकी ना जाने कितने ही सांसदों को मारने में कामयाब हो जाते। फिर भी, हमारे देश के बेशर्म राजनेताओं को अपनी करनी पर शर्म नहीं आती है। अभी तक आतंकी हमले की कार्यवायी में अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले सुरक्षा बलों के परिवार जनों को उचित सहायता प्रदान नहीं की गई है। जबकि यही अगर वोट बैंक का मामला होता तो कब के कार्यवायी हो गई होती।

भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है और लोकतांत्रिक व्यवस्था में, संसद में, जनता के द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि नीति-नियमों के निर्माण करते हैं। संसद की सुरक्षा-व्यवस्था पूरी तरह से चाक-चौबंद होती है। लेकिन भारतीय सुरक्षा बलों को इसका अंदेशा नहीं था कि आतंकी संसद भवन को ही टार्जेट करेंगे। उधर आतंकी संसद भवन की रेकी कर चुके थे और वे जान गए थे कि संसद भवन में प्रवेश करने के लिए सांसदों की स्टीकर लगी एंबेसडर कार से प्रवेश किया जा सकता है और ऐसा ही उन्होंने किया भी। आतंकियों के एंबेसडर कार से प्रवेश करने के कारण किसी भी सुरक्षा कर्मियों ने उनपर ध्यान नहीं दिया और यहीं से सुरक्षा चूक हुई जिसका खामियाजा हमारे जांबाजों को अपनी जान की कीमत देकर चुकानी पड़ी।

आतंकियों ने संसद भवन में प्रवेश करने के लिए गृहमंत्रालय की स्टीकर लगी कार पास का उपयोग किया था। इसके लिए, कंप्यूटर से जाली कार पास बनाए गए थे। अचानक हुए हमले से देश ही नहीं विदेशों में बैठे लोग भी आतंकियों की इस कार्यवायी से सहम गए थे। फिर भी, संसद भवन में मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने अपने प्राणों की बाजी लगाकर इन आतंकियों को मार गिराया। इस बीच, आतंकियों का सामना करते हुए, दिल्ली पुलिस के पांच जवान, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की एक महिला कांस्टेबल और संसद के दो गार्ड, काम कर रहा एक माली और एक पत्रकार शहीद हो गए थे। इसके अलावा, 16 जवान घायल भी हुए।

बिडंबना देखिए कि संसद भवन में आतंकी हमले के दौरान अपने महिला सहकर्मी को बचाने के दौरान घायल हुई होमगार्ड की महिला जवान राधा चौहान आज झाड़ू मारने का काम करके अपना जीवन यापन कर रही है। यह हमारे देश के मुंह पर तमाचा नहीं तो और क्या है? उस दिन वह संसद भवन के गेट नंबर पांच पर तैनात थी। आतंकियों को गोली खाने के बाद पहले तो नौकरी गई। फिर झोंपड़ी में आग लगी औऱ फिर पति की मौत हो गई। एक के बाद एक हादसे से वो दो-चार होती रही है और भारत सरकार या इसके किसी प्रतिनिधि ने राधा चौहान की शिकायत को दूर करना उचित नहीं समझा।

संसद हमले के लिए सारी साजिश रचने के जिम्मेदार और मास्टरमाइंड अफजल गुरु को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया और देश की सर्वोच्च अदालय ने संसद पर हमले की साजिश रचने के आरोप में 4 अगस्त 2005 को अफजल गुरु को फांसी की सजा सुनाई थी। कोर्ट के आदेश के अनुसार, 20 अक्टूबर, 2006 को अफजल गुरु को फांसी पर लटका दिया जाना था।

इसी बीच, 3 अक्टूबर 2006 को अफजल गुरु की पत्नी, तब्बसुम ने राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर कर दी। अभी तक राष्ट्रपति ने इस पर कोई निर्णय नहीं लिया है। इस बीच पिछले दिनों खबर आई कि राष्ट्रपति ने अफजल गुरु की दया याचिका को गृहमंत्रालय के विचारार्थ भेज दिया है जिस पर गृह मंत्रालय सुशील शिंदे का कहना है कि संसद के मौजूदा सत्र के बाद इस पर कोई निर्णय लेंगे। कभी यह फाइल दिल्ली सरकार के पास जाती है तो कभी गृहमंत्रालय के पास तो कभी राष्ट्रपति के पास। देश के सम्मान के साथ खिलवाड़ करने वाले आतंकी को फांसी देने में इतना वक्त क्यों? जिसने यह भी नहीं सोचा कि वह लोकतंत्र के मंदिर पर हमला कर रहा है उसे दया याचिका दाखिल करने का क्या हक? क्या यह दया याचिका का दुरुपयोग नहीं है। ऐसे लोगों को क्यों हक दिया जाता है, जो दूसरों की जान लेते समय तो परवाह नहीं करते किसी की। फिर उनके लिए क्यों रहम की अपील की जाती है।

देश में ऐसे कई नेता है जो अफजल गुरु को फांसी दिए जाने का विरोध कर रहे हैं। इसमें केंद्रीय इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री तथा अलगाववादी कार्यवायी के लिए सुर्खियों में रहे बिना पेंदी के लोटा वाले राजनीतिज्ञ शामिल हैं।

सुरक्षाबलों को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए अफजल गुरु जैसे आतंकियों को फांसी के तख्ते पर लटकाना बहुत जरूरी है, नहीं तो हमारे देश को आतंकी सदा की तरह सॉफ्ट देश मानते हुए आगे भी एक के बाद एक हमले करते रहेंगे जैसा कि करते रहे हैं।

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