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अपराध मुक्त बिहार का खोखला दावा

http://information2media.blogspot.in/2012/04/blog-
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हरेश कुमार

इस देश के राजनीतिज्ञों ने भी राजनीति का मजाक बनाके रख दिया है। उदाहरण के लिए, बिहार की राजनीति को ही लें। लालू यादव के 15 वर्षों के कुशासन और जंगलराज से मुक्ति पाने के लिए बिहार की जनता ने नितिश कुमार के नेतृत्व में जनता दल यूनाईटेड और भारतीय जनता पार्टी को शासन चलाने का हक दिया।

नितिश कुमार का पहला कार्यकाल कुल मिला-जुलाकर ठीक-ठाक रहा लेकिन दूसरे कार्यकाल में नितिश कुमार के अंतर अहंकार की बू आने लगी। उन्होंने अपने पार्टी में ही विरोधियों को कमजोर करने के लिए कभी लालू के कुशासन में नजदीकी भागीदार रहे नेताओं को रातों-रात पार्टी में शामिल कर लिया। इसका पार्टी में काफी विरोध हुआ, लेकिन कहावत है ना कि समरथ को नहीं दोष गोसाईं। सो, नितिश कुमार ने सत्ता के ताकत के बूते विरोध को तत्काल तो दबा दिया है लेकिन यह चिंगारी की शक्ल में धीरे-धीरे कब आग का रूप धारण कर लेगी, कहा नहीं जा सकता है?

अभी हाल ही में मुन्ना शुक्ला ने वैशाली के निजी इंजीनियरिंग कॉलेज के निदेशक, संतपाल यादव से जेल में रहते हुए बिहार में नितिश कुमार द्वारा आयोजित अधिकार रैली के नाम पर 7 करोड़ रुपये रंगदारी की मांग की (समाचार माध्यमों में बाद में 2 करोड़ रुपये ही बताया गया)।

मुजफ्फरपुर क्षेत्र के डीआईजी के मुताबिक पहली नजर में यह मामला सत्य प्रतीत होता है। लेकिन देखने वाली बात यह है कि जेल में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे अपराधियों के पास मोबाइल आया कहां से। यह बात कोई भी आदमी बता सकता है कि जरूर इसमें किसी पुलिसकर्मी ने सहायता की होगी।

मोबाइल का सिम वक्त रहते अपराधियों ने नष्ट कर दिया होगा। फिर, कानून इनका क्या बिगाड़ लेगा? पेशी पर पार्टी का पर्चा बांट रहे हैं और साथ में, मुन्ना शुक्ला का नाम भी है। फिर किस मुंह से आप इसे विरोधियों का प्रचार कह सकते हैं?

शायद बिहार की जनता इस सबको देखने की अभ्यस्त हो गई है और उसे अब कोई आश्चर्य भी नहीं होता।

लेकिन बात इत्ती साधारण भी नहीं है। मुन्ना शुक्ला खुद अपराधिक चरित्र के हैं और लालगंज (वैशाली से विधायक रह चुके हैं। कभी आनंद मोहन बिग्रेड में अग्रणी नेता के तौर पर थे, और वैशाली संसदीय क्षेत्र से आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद को वहां से सांसद बनाने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। गौरतलब है कि उस चुनाव की बड़े पैमाने पर समाचार माध्यमों में चर्चा हुई थी और लालू के उम्मीदवार और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री सत्येन्द्र नारायण सिंह के परिवार की प्रतिष्ठा भी इस क्षेत्र से जुड़ी थी।)

बिहार में लालू यादव के शासन काल में यही नेता लोग थे जिनके कारण बिहार की छवि को काफी हानि पहुंची थी और सारे उद्योग धंधे बंद हो गए थे। तब बिहार में एक मात्र उद्योग – अपहरण का फल-फूल रहा था और उसे प्रशासन का सहयोग भी मिल रहा था। लेकिन समय के साथ-साथ जब इसने भस्मासुर का रूप ले लिया तो सत्ताधारी पार्टी को इसमें सुधार करने की सूझी लेकिन तब तक इतनी देर हो चुकी थी कि लोगों में इसकी कोई छवि बाकि नहीं रह गई थी और बिहार के लोग किसी तरह से इस शासन से छुटकारा पाना चाह रहे थे। इसका लाभ नितिश कुमार और भारतीय जनता पार्टी को मिला, लेकिन इन पार्टियों ने भी समाज की सच्चाई जाति-प्रथा को बनाए रखने में अपनी भलाई समझी और सिर्फ अपनी जरूरतों के लिए जनता को बेवकूफ बनाकर उसे दिन में तारे दिखाने के सपने दिखाए। लेकिन पुरानी कहावत है कि बिल्ली की अम्मा कब तक खैर मनाती। आप गलत, भ्रष्ट लोगों के साथ लेकर लोगों को कब तक उल्लू बनाते रहेंगे। जनता सब जानती है, उसे ज्यादा दिनों तक कोई भी पार्टी या नेता बेवकूफ नहीं बना सकता है।

नितिश कुमार की दूसरी पारी की शुरुआत बेहद निराशानजक रही है। इसमें अपराधियों को खुला संरक्षण प्राप्त है। नितिश कुमार के नजदीकी लोगों में मोकामा से विधायक अनंत सिंह का नाम अग्रणी लिया जाता है जिन पर 40 से अधिक हत्या और अपहरण के मुकदमें दर्ज है। ऐसे में नितिश कुमार किस तरह से लोगों को स्वच्छ राजनीति का भरोसा दिला पायेंगे, यह सवाल आज हर किसी के जेहन में कौंध रहा है। अपराधियों की पत्नी, भाई या परिवार या रिश्तेदारों को पार्टी में शामिल करना या उन्हें टिकट देना और फिर अपराध दूर करने की नौटंकी करना दोनों बातें एक साथ नहीं हो सकती है।

अभी नितिश बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के बहाने राजधानी पटना में अधिकार रैली का आयोजन करने वाले हैं जिसके लिए पूरे बिहार की मशीनरी को झोंक दिया गया है। प्रशासन में हर किसी को इसके लिए एक निर्धारित लक्ष्य आवंटित किया गया है। क्या पुलिस, क्या प्रसाशन सब अपने लक्ष्यों को समय पर पूरा करने में लगे हैं। नितिश कुमार ने अपनी जाति के लोगों में बिहार के प्रशासनिक सेवा में हर स्तर पर बहाल कर दिया है फिर लालू से वे कैसे अलग हो गए। लालू के राज में अगर मुस्लिमों और यादवों का बोलवाला था तो नितिश के राज में कुर्मी-कोयरी, भूमिहार जैसी जातियों का राज हो गया है। यानि की निजाम बदला लेकिन सत्ता का स्वरूप नहीं। हर जिले में दबंग विधायक और सांसदों की अपनी हुकूमत चलती है। जो भी कार्य केंद्र या राज्य सरकार की योजनाओं के हो रहे हैं, सारे में उन्हीं को ठेका दिए जाते हैं, जो नितिश कुमार के हितों को पूरा करते हैं। फिर, बिहार राज्य का समग्र विकास कैसे होगा?

मुन्ना शुक्ला जनता दल यूनाईटेड के पूर्व विधायक हैं और भाजपा से शिवहर से दूसरी बार सांसद, रमा देवी के पति लालू यादव के शासन में तकनीकि शिक्षा मंत्री और बाहुबली नेता स्वर्गीय बृजबिहारी प्रसाद (इंजीनियरिंग घोटाला का अभियुक्त) की हत्या में आजावीन कारावास की सजा भुगत रहे हैं अभी उनकी पत्नी अन्नु शुक्ला लालगंज से जेडीयू की विधायक हैं। उनके लिए तो यही कहा जा सकता है कि सैंया भए कोतवाल तो अब डर काहे का। सब विरोधियों का प्रचार है। जनता बेवकूफ है, केवल आप और आपके साथी समझदार हैं।

इस तरह से कोई भी उद्योगपति बिहार में तो अपना उद्योग लगाने से रहा। ना बिजली, ना पानी और ना कोई व्यवस्था। कानून का हाल सभी को मालूम है?

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