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आइये विजयादशमी पर समाज में मौजूद रावण को मारने का संकल्प लें

http://information2media.blogspot.in/2012/04/blog-
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हरेश कुमार

हमारा देश आज विचित्र परिस्थितियों से दो-चार हो रहा है। सदियों से, दूर्गापूजा का आयोजन हिंदू धर्म के लोग बुराई पर अच्छाई की विजय और बुरी शक्तियों के नाश के प्रतीक के तौर पर मनाते रहे हैं। लेकिन आज हम देखते हैं कि भ्रष्टाचार और हर तरह के कुकर्मों में सर से लेकर पांव तक शामिल रहे लोग रावण, मेघनाथ और कुंभकर्ण के पुतले का दहन करने में लगे हैं। रावण जैसा विद्वान ना तो इस पृथ्वी पर कभी था और ना कभी होगा, लेकिन अपने गलत कार्यों और अहंकार के कारण उसका सर्वनाश हो गया।

हिंदू धर्म के अनुसार, वो सृष्टि के रचयिता, भगवान ब्रह्मा का पोता था लेकिन अपने गलत कार्यों के कारण राक्षस कुल में उसे जन्म लेना पड़ा था और उसे मुक्ति देने के लिए भगवान राम को पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ा था तथा उसने माता सीता का अपहरण किया जिससे कि भगवान स्वयं उसका संहार करे और उसे मुक्ति मिल जाए।

रावण ने अपने ही छोटे भाई विभीषण को अहंकारवश लात मारकर भरी सभा से बाहर कर दिया था और वो भगवान राम की शरण में जा पहुंचा था और भगवान ने जाते ही उसका राजतिलक कर दिया था।

तभी तो तुलसीदास ने रामचरित मानस में कहा है – जहां सुमति तहां संपत्ति नाना, जहां कुमति तहां विपत्ति निदाना। यानि कि जहां लोग मिल-जुल कर रहते हैं और भाईचारा होता है वहां सब कुछ मंगलमय होता है और जहां अहंकार होता है, फूट होती है वहां जल्द ही विनाश के लक्षण प्रकट होते हैं।

खैर, हम अभी समाज में मौजूद वर्तमान रावण के बारे में बात कर रहे थे जो हर तरह के भ्रष्टाचार में लिप्त है और देश की भावनाओं का गलत इस्तेमाल कर रहा है। आज सत्ता में शामिल पार्टियों से लेकर विपक्ष में मौजूद सभी पार्टियों के नेता हर तरह के कुकर्मों में लिप्त हैं। जरूरत है ऐसे नेताओं के संपूर्ण संहार की। तभी समाज की वास्तविक उन्नति हो सकती है लेकिन इनका संहार करेगा कौन? लाख टके का सवाल है यह।

ऐसे ही लोग आज समाज में सभी सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं और इनके पास सत्ता की ताकत भी है। ये लोग समरथ को नहिं दोष गोसाईं को पूरी तरह से चरितार्थ करते हैं और हर तरह के गलत कार्यों में लिप्त होने के बाद भी इनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाता है क्योंकि विपक्षी पार्टियों के नेता भी इन्हीं के साथ में सुर में सुर मिला रहे हैं और वे भी ऐसे ही कर्मों में लिप्त हैं।

हम सभी को ऐसे में जाति-धर्म-संप्रदाय और प्रांत की भावना से उपर उठकर इन नेताओं के गलत कार्यों का विरोध करने के साथ ही अपने अंदर के रावण को मारने की जरूरत है जो बुराई का प्रतीक है और राम राज्य की स्थापना में सहयोग की आवश्यकता है तभी हम विजयादशमी को सही तौर पर मना पायेंगे। वरना हर साल की भांति यह पर्व आता और जाता रहेगा और हम यूं ही वर्तमान रावण के कर्मों का फल भोगने को मजबूर होते रहेंगे।तो आइये आज विजयादशमी के शुभ-अवसर पर हम सभी संकल्प लेते हैं कि समाज में मौजूद एक-एक रावण को चुन-चुन कर मारें। जय माता दी।

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