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राजनीतिकों का सियासी चेहरा

http://information2media.blogspot.in/2012/04/blog-
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हरेश कुमार

हमारा देश को कभी सोने की चिड़िया कहा जाता था और इस देश ने संपूर्ण विश्व को मानवता का पाढ़ पढ़ाने के साथ-साथ हर क्षेत्र में नेतृत्व की भूमिका निभाई। लेकिन उसी देश पर यहीं के कुछ मीरजाफर और जयचंदों के कारण, मुठ्ठी भर विदेशियों ने 200 सालों तक राज्य किया। देश की स्वाधीनता के लिए ना जाने कितने ही लोगों ने अपने प्राणों की बलि दी और कितने ही माताओं की गोद सूनी हो गई लेकिन जब देश आजाद हुआ तो यहां प्रजातंत्र की स्थापना का लाभ मात्र कुछ परिवारों को मिला औऱ उन्होंने अपने लाभ के लिए छोटे-छोटे स्तरों पर जमींदारों औऱ पुराने राजे-रजवाडों की मदद की, (बस इसलिए उनकी गद्दी सलामत रहे) जिन्होंने कभी इस देश को गुलाम बनाने वाले अंग्रेजों की मदद की थी और उस दौरान भी अपनी चापलूसी के कारण अपनी सत्ता को बरकरार रखने में कामयाबी पाई थी, हां, ये अलग बात है कि उन्हें समय-समय पर इसकी कीमत चुकानी पड़ती थी। लेकिन समय के साथ-साथ हमारे देश के नेता भ्रष्ट से भ्रष्टतम होते गए और उनकी देखा-देखी हर जगह भ्रष्टाचार ने ऐसी पकड़ बना ली है कि वह सुरसा की तरह होता जा रहा है।

भ्रष्टाचार इस देश का एक ऐसा राजरोग हो गया है जो बढ़ता ही जा रहा है। जनता महंगाई और भ्रष्टाचार से बुरी तरह से परेशान और आतंकित है। उपर से कोई सुनने वाला नहीं है। एक पुरानी कहावत है एक तो कोढ़ और उपर से खुजली यानि देश में हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार और भ्रष्ट तत्वों का बोलवाला है। किससे शिकायत करें। हर जगह एक ही जवाब मिलता है कुछ ले-देकर मामला निपटा लो।

सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस और विपक्ष की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी में उपर से लेकर नीचे तक हर स्तर पर भ्रष्टाचार गहरी जड़ें जमा चुकी है और इसके नेतागण अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए हर जगह भ्रष्ट तरीका आजमाते रहे हैं और जब चोरी पकड़ी जाती है तो विपक्षी दलों का दुष्प्रचार कहने लगते हैं।

कभी-कभी तो लगता है कि भ्रष्टाचार को सार्वजिनक जरूरत कर देना चाहिए और हर चीज के लिए एक राशि और समय सीमा तय कर देनी चाहिए, इसे आप सुविधा शुल्क भी कह सकते हैं और एक जिम्मेदारी तय कर देनी चाहिए। क्योंकि बगैर कमीशन के तो इस देश में कहीं कुछ होता नहीं दिख रहा है।

देश के निवासी भ्रष्टाचार के लगातार हो रहे खुलासों से परेशान सी हो गई है। जब भी आप समाचार माध्यम खोलें तो हर पल एक नया भ्रष्टाचार का खुलासा होता रहता है। ऐसा नहीं था कि पहले भ्रष्टाचार नहीं होता था, पहले भी नेता उतने ही भ्रष्ट थे। लेकिन तब ना तो इतने माध्यम थे और ना ही इससे मतलब रखने वाले लोग। लेकिन जब से सोशल मीडिया का उभार आया है, तब से नेताओं के भ्रष्टाचार का कुछ ज्यादा ही खुलासा होने लगा है। क्योंकि बाकि जगह तो नेताओं ने अपनी दादागिरी और सरकारी विज्ञापनों के बल पर ऐसी खबरों को चलने से रोक लिया है लेकिन सोशल मीडिया को किस तरह से रोकेंगे, सो नेताओं को कुछ ज्यादा ही खुजली होने लगी है इस माध्यम के उभार से। वे किसी भी तरह से इसे रोकना चाहते हैं जिससे कि जनता के बीच जो छवि उभर कर आ रही है उसे रोके लेकिन इसे उनकी बदकिस्मती कहिए कि वे अब इसे किसी भी कीमत पर रोक नहीं पायेंगे।

क्या पक्ष और क्या विपक्ष सारे दल एक जैसा ही व्यवहार कर रहे हैं। सभी दलों के नेता देश की संपदा को ऐसे लूट रहे हैं जैसे वे किसी अन्य ग्रह के वासी हों और जल्द से जल्द सबकुछ समेट कर भागना ही उनकी एकमात्र मंशा हो। तभी तो सारे दलों के नेता एक जैसे हैं। सब के सब चोर। नेताओं को देखने से ऐसे लगता है कि कोई कभी साइकिल पर चद्दर बेचता था तो कोई भिंडी बाजार का पुराना शातिर चोर जैसे लगता है।

कल तक, हम कांग्रेस के घोटालों के बारे में सुना करते थे और विपक्ष की पार्टियां, घोटाले उछालने वाले को हाथों-हाथ लेती थी लेकिन जैसे ही खुद के घोटाले के बारे में खबर उछली तो उसे दूसरी पार्टी का एजेंट कहने लगे। वाह क्या जनता इतनी भोली है। आरोपों पर जवाब देने से बचकर सारी पार्टी अपने अध्यक्ष के बचाव में उतर गई। फिर आप दूसरों से अलग कैसे हो गए। जैसे दूसरी पार्टियां और उसके नेता चोर हैं, वैसे आप भी हो।

इसी पार्टी के अध्यक्ष, लालकृष्ण आडवाणी ने कभी हवाला प्रकरण में अपना नाम आने पर इस्तीफा दे दिया था। और इसी पार्टी के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पेट्रॉल पंप के आवंटन में गड़बड़ी की शिकायत पर आवंटर ही रद्द कर दिया था। खैर, अब वैसी बात नहीं रही पार्टी में। पार्टी को भी पैसा खाने का चस्का लग गया है।

वर्तमान पार्टी अध्यक्ष नितिन गड़करी ने विदर्भ की जनता जो सिंचाई के अभाव में लगातार आत्महत्या कर रही है। देश का सबसे पिछड़ा क्षेत्र है विदर्भ और वहां से आने वाले नेता अगर जनता के हित में काम ना करके अपने बिजनेस को बढ़ाने के लिए काम करते हैं तो उन्हें कैसे माफ किया जा सकता है। ऐसा पार्टी अध्यक्ष जो ठेकेदारों के बकाये राशि की भुगतान के लिए केंद्रीय मंत्री को चिट्ठी लिखता है लेकिन जिसने किसानों के हितों की रक्षा के लिए कभी आवाज नहीं उठाना मुनासिब नहीं समक्षा।

यह वह पार्टी है जो कभी अलग चाल, चरित्र और चेहरा का वादा देश की जनता से करती थी, लेकिन वास्तविकता में ऐसा नहीं है। क्षेत्र की जनता के लिए सिंचाई की योजना के लिए बांध बनाए गए और उस बांध का पानी गरीब किसान को ना देकर अपनी फैक्टरी में किया और यहीं तक नहीं रूके बल्कि बांध बनाने से जो जमीन बच गई उसे वहां की सत्ताधारी पार्टी से मिलकर उसे भी हथिया लिया। तभी तो ऐसे नेताओं को महाराष्ट्र का सिंचाई घोटाला जो कि 72 हजार करोड़ से ज्यादा का है दिखाई नहीं दिया।

अगर ऐसी बात नहीं थी, तो एक ऐसा संगठन (इंडिया अगेंस्ट करप्शन) जो देशहित में काम कर रहा है और इसका एक मामूली कार्यकर्ता अगर यह बात शिद्दत से उठा सकता है तो देश की जांच एजेंसियों को इसका पता कैसे नहीं लगा। वर्तमान में, देश और राज्य की सभी जांच एजेंसियां सत्ताधारी केंद्रीय और राज्य की पार्टियों के हित में काम कर रही है और वो वही करती है जो पार्टियों के हित में हो बाकि मामलों में वो जांच कम दबाने का काम करती है। नहीं तो क्या कारण था कि क्वात्रोजी देश से भाग जाता और ब्रिटेन के बैंक में जमा पैसा भी निकालने में कामयाब होता?
इस तरह के कितने उदाहरण हैं।

अगर, अब भी हम देशहित में पार्टी के लाइन से उपर नहीं उठे तो एक चोर जाएगा और उसके स्थान पर उससे बड़ा कोई चोर आएगा। तभी तो देश के गृहमंत्री के पद पर आसीन व्यक्ति कहता है कि लोगों की यादाश्त कमजोर होती है और जल्द ही वे इसे भूल जाते हैं। भगवान ऐसे नेताओं को सदबुद्धि दे।

अभी एक नेता जी जो अपने विवादित बयानों के लिए हमेशा से चर्चा में रहे हैं ने कहा कि 71 लाख छोटी रकम होती है। और उपर से कानून मंत्री गली-महल्ले के आवारा चोरों जैसा व्यवहार करने लगे हैं। कानून मंत्री का ऐसा बयान अरविंद केजरीवाल फर्रूखाबाद जायें, पर लौट कर भी आयें क्या साबित करता है। देश में कोई कानून का राज है या गुंडे मवाली चला रहे हैं या सच में यह बनाना रिपब्लिक हो गया है जहां कानून-व्यवस्था नाम की कोई चीज नही। क्या हम किसी ऐसे देश में रह रहे हैं जहां गुंडे और मवाली लोग अपने आतंक के बूते सरकार चलाते हैं।

और अंत में हरि अनंत हरि कथा अनंता की तरह भ्रष्टाचार की महिमा अपरंपार है और सारे दल इससे जुड़े हुए हैं। कोई बी दूध का धुआ हुआ नहीं है इस देश में। किसी को मुस्लिम के नाम पर सांमप सूंघ जाता है तो किसी को किसी अन्य जातियों और धर्मों के नाम पर। क्या आप में से कोई भी बता सकता है कि कांग्रेस से लेकर दिवंगत विश्वनाथ प्रताप सिंह, लालू यादव, मुलायम सिंह यादव, कम्युनिस्ट पार्टियों को मुस्लिमों का आतंक क्यों नहीं दिखता है सिर्फ और सिर्फ एकमात्र कारण वोटबैंक है और कुछ नहीं।

ऐसे नेताओं के लिए सिर्फ और सिर्फ वोट बैंक को बरकरार रखना ही उनकी पहली प्राथमिकता में शुमार है नहीं तो क्या कारण थे कि पंजाब में जो आतंकवाद खत्म हो चुका था वह एक बार फिर से सर उठाने लगा है और इसका एकमात्र कारण कांग्रेस पार्टी के द्वारा 1984 के सिख दंगों के आरोपी तीन कांग्रेसी नेताओं को बचाना रहा है जिसमें से एक तो भगवान को प्यारे हो गए और दूसरे कांग्रेस पार्टी की उपलब्ध कराई गई सुरक्षा की छत्रछाया में आराम से जीवन गुजार रहे हैं, तो आप कैसे जख्मों पर मरहम लगाओगे। सिर्फ उस समुदाय के व्यक्ति को प्रधानमंत्री या सेनाध्यक्ष बनाकर।
मनमोहन सिंह कैसे प्रधानमंत्री है इसे देश ही नहीं विदेश के लोग भी देख रहे हैं जिनके आंखों के सामने एक से बढ़कर एक घोटाले होते गए और उन्होंने अपनी राजगद्दी की खातिर घृतराष्ट्र की तरह 10 जनपथ के कहने या इशारे पर आंखें बंद रखी। हकीकत भगवान जानता है।

कश्मीर के मुद्दे को हम 1972 में शिमला समझौते में एक ही बार में निपटा सकते थे, लेकिन उस मौके को हाथ से जाने दिया और पाकिस्तानियों पर भरोसा करते रहे जबकि पाकिस्तानियों ने बराबर हमारे सीने में खंजर ही भोंका। फिर ऐसी उदारता क्यों? इस देश के राजनीतिज्ञों की करनी समझ से परे है। नेताओं की कथनी औऱ करनी में कोई सामंजस्य नहीं है।

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