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हरेश कुमार
बहुत दिनों से मैंने कोई कविता नहीं लिखी।
शायद इसके लिए मनमाफिक सब्जेक्ट ही नहीं मिल पा रहा था।
सोचता था लिखूं पर किस पर लिखूं। ये तय नहीं हो पा रहा था।
नेताओं के घोटालों को देख-सुनके देशवासी इतना परेशान हो चुके हैं कि
अब ये कोई मुद्दा ही नहीं रहा।
ना तो अब ये मुद्दा रहा कि देश के सत्ताधारी नेता क्या बोलते हैं
और ना ही ये कि वे क्या बोलते हैं?
काहे कि उनकी बात का कोई वजन नहीं रह गया।
अभी हाल की बात बताऊं यारों।
हरियाणा में कांग्रेस की सर्वोच्च नेता गई
दलितों के घर।
दलितों पर रेप के बढ़ते मामले पर चिंता जताने।
तो दूसरे ही दिन सरकार के प्रवक्ता ने कह दिया कि
90 प्रतिशत से ज्यादा रेप के केस आपसी सहमति से होते हैं।
वाह नया खुलासा। मंत्री पर शायद बीती होगी।
हम नहीं कह सकते हैं।
अभी हाल ही में राष्ट्रीय दामाद के द्वारा करोड़ों की संपत्ति बनाने का खुलासा हुआ था।
फिर उससे देशवासियों का ध्यान भटकाने
और अपने दामन पर लगे पहले के आरोपों से बचने के लिए
सबसे तेज चैनल ने
एक जोरदार धमाका किया या कराया गया। मालूम नहीं।
जान देने की बात करते थे जो मंत्री, अब इस्तीफा देने की बारी आ गई है।
पहले मैंगो मैन, बनाना रिपब्लिक अब थर्ड ग्रेड कहने लगे हैं।
देशवासियों के हित में सर्वोच्च न्यायालय को ही चुनौती दे रहे थे चुनावों में।
वो तो भला हो क्षेत्र की जनता का जिसने इनके नुमाइंदे की जमानत ही जब्त कर दी।
शायद वो सब जानती थी। हकीकत से परिचित थी।
देश के कानून मंत्री हैं और देश के विकलांगों का पैसा ही हजम कर जाते हैं।
उन्हें पता है कि अंग्रेजों के बनाए कानून में इतने सारे लूपहोल हैं कि एक बार जब केस दर्ज होगा तो वर्षों तक न्याय की आश में बंदा दर-बदर की ठोकरें खाता फिरेगा। नतीजा वही सिफर।
फिर काहे की चिल्ल-पौं।
जमकर लूटो और सत्ता का आनंद लो। परेशानी काहे की। जनता फिर से उन्हें ही दोबारा चुनेगी। जैस कि पहले से करती आई है।
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