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हरेश कुमार
लगता है कि इस देश के राजनीतिज्ञों ने कभी ना सुधरने की कसम जैसे खा ली है और उस प्रतिज्ञा पर, राजा बलि की तरह एकदम से उटल हैं। चाहे कोई भी राजनीतिक मामला हो, हमारे देश के नेतागण अपनी थुथरई से बाज नहीं आते और हर समय अपने कुतर्कों से देश की जनता को भ्रमित करने के साथ ही गलत जानकारी देते रहते हैं।
ताजा मामला है – संसद की स्थायी समितियों में, ए. राजा, सुरेश कलमाड़ी कनिमोझी को शामिल करने का। इन राजनीतिज्ञों पर हजारों करोड़ रुपये के घोटाला करने का आरोप है। देश के लोगों ने देखा कि किस तरह से इन तथाकथित नेताओं ने अपने आकाओं के संरक्षण में देश का हजारों करोड़ रुपये डकार लिए और अंतत: इन आरोपों से मुकरते रहे।
ये सही है कि इन सभी राजनीतिज्ञों पर लगे घोटालों के आरोपों पर न्यायलयों में सुनवाई चल रही है और इन नेताओं के तर्कों के अनुसार, जब तक मामला न्यायालय में विचाराधीन है, तब तक ये निर्दोष हैं (नेताओं और पार्टियों के कुतर्कों के अनुसार)। वैसे देश का आम-आदमी जानता है कि किस तरह से इन नेताओं ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग करके देश की निधि को लूटा और ऐसा करते समय उन्हें एक बार भी देश की न्याय-व्यवस्था का डर नहीं लगा। और ऐसा हो भी क्यों ना?
आज तक इस देश में एक-आध अपवादों को छोड़ दें तो कभी भी राजनीतिज्ञों, बड़े उद्योगपतियों, व्यवसायियों या बड़े अपराधियों को किसी भी अपराध में सजा हुई हो।
आज भी देश का सबसे बड़ा अपराधी, दाउद इब्राहिम इन्हीं नेताओं की कृपा के कारण पड़ोसी देश पाकिस्तान में परिवार सहित मौज की जिंदगी जी रहा है और उसके अपराधों की सजा यहां की निर्दोष जनता भुगत रही है।
1992 के मुंबई दंगों को कौन भूल सकता है। जब देश की आर्थिक राजधानी मुंबई को दाउद और उसके गुर्गों ने स्थानीय नेताओं की कृपा से हिलाकर रख दिया। एकबारगी तो देश सोचने पर मजबूर हो गया, लेकिन धीर-धीरे सबकुछ पटरी पर आ गया। दोगले धर्मनिरपेक्ष नेताओं के कारण अपराधी देश की सीमा से बाहर चले गए और आजतक उस पर कोई कार्यवायी नहीं हो सकी।
यही कारण है कि पड़ोसी देश पाकिस्तान बार-बार हमारी अस्मिता से खिलवाड़ करता है और उसके प्रशिक्षित गुर्गे एक बार फिर से देश की आर्थिक राजधानी पर आतंकवादी हमला करने में सफल रहे। देश के जांबाज पुलिसकर्मियों की मदद से आतंकवादी हमला करने वाले 10 पाकिस्तानी गुर्गों में से मात्र एक अजमल कसाब को जिंदा पकड़ा जा सका। और आज तक वह भारतीय कानून-व्यवस्था की खामियों और राजनीतिज्ञों की एक खास समुदाय को अपना वोट बैंक समझने के कारण बचा हुआ है। कसाब पर जेल की चहारदीवारी में सुरक्षा-व्यवस्था और खाने-पीने पर ही प्रत्येक दिन लाखों में खर्च हो रहा है। अभी तक, कसाब पर देश की सुरक्षित निधि से करोड़ों रुपये खर्च हो चुके हैं। क्या किसी दिन देश की आम जनता को इसका कारण भारत सरकार बता सकेगी।
अभी कुछ दिन पहले दिल्ली में जनलोकपाल को लाने के लिए अन्ना हजारे, अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसौदिया, किरण बेदी एवं अन्य के द्वारा आंदोलन के दौरान सरकार एवं विपक्षी पार्टियों के द्वारा कहा गया था कि संसद सर्वोच्च है और कानून बनाना संसद का काम है। क्या संसद की सर्वोच्चता इसी तरह के प्रकरणों से बनी रहेगी। क्या किसी दिन इस देश के नेताओं को लज्जा आएगी?
विश्व में भारत शायद पहला ऐसा देश है ऐसे लोग यहां सांसद और विधायक तथा जनता के प्रतिनिधि बनते हैं जिन पर हत्या, बलात्कार, अपहरण या इसी तरह से कानून तोड़ने के मामले होते हैं। जैसा कि हमने पहले ही कहा कि इसके पक्ष में कथित दल ये तर्क देते हैं कि मामला न्यायलय में विचाराधीन है और जब तक कोर्ट से कोई अपराधी साबित नहीं हो जाता, वो निर्दोष है। वाह रे, हमारे देश के जनप्रतिनिधि। अपनी ही जनता को लूटो और फिर उसी से वोट भी मांगने जाओ।
आजादी के 65 सालों के बाद भी इस देश में अभी तक टिकट वितरण के दौरान जाति, धर्म, संप्रदाय, क्षेत्रवाद से लेकर दबंगई तक को प्राथमिकता दी जाती है।
एक बार भी हमारे देश के नेताओं ने सोचा कि अभी भ्रष्टाचार के विरुद्ध देश में जबरदस्त माहौल है और अरविंद केजरीवाल से लेकर अन्य सामाजिक कार्यकर्ता अपने-अपने स्तर पर इसके लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन बेशर्म राजनीतिज्ञों को ऐसे में भी लाज नहीं आई।
ऊपर से देखिए कोढ़ में खाज यह कि सत्ता में शामिल कांग्रेस पार्टी के लोकसभा में नेता और देश के गृहमंत्री – सुशील कुमार शिंदे ने खुले आम कहा कि जनता की यादाश्त बहुत कमजोर होती है और बोफोर्स घोटालो की तरह वे मौजूदा कोयला घोटाले को भी भूल जायेंगे।
सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के मौजूदा युग में राजनीतिज्ञ कितना भी कहें कि मैंने यह बात इस संदर्भ में नहीं कही थी, या मेरी बात को गलत तरीके से लिया गया है, जनता सब समझती है और उससे अब कुछ भी छुपाया नहीं जा सकता है। शायद शिंदे को यह मालूम नहीं या उम्र के असर के कारण यादाश्त कमजोर हो गई हो कि बोफोर्स घोटाला प्रकरण के बाद से कांग्रेस केंद्र सरकार में बहुमत के लिए तरस गई औऱ भेड़िया आया, भेड़िया आया का भय दिखाकर एक समुदाय विशेष का वोट लेकर सत्ता में आ रही है।
कांग्रेस पार्टी सत्ता पाने के लिए विकास पर कम जाति, धर्म, संप्रदाय, क्षेत्रवाद के समीकरणों पर ज्यादा जोर दे रही है। तभी तो, दिल्ली में बार-बार झुग्गी-झोंपड़ी बसती है और वोट पाने के लिए अनाधिकृत बस्तियों को कांग्रेस पार्टी की मुख्यमंत्री अधिकृत करती है। इससे इन नेताओं को एक साथ वोट के साथ-साथ कई लाभ होते हैं। अधिकृत कॉलोनियों में जमीन की दर बढ़ जाती है और नेता से जुड़े बिल्डरों की पौ-बारह होती है। ऐसे लोगों की तो चांदी ही चांदी होती है। तभी तो ना ही अपराध पर लगाम लग रहा है और ना ही अपराधियों पर। क्योंकि सबको मालूम है कि असल में जड़ कहां है। जब तक अपराध के जड़ पर प्रहार नहीं किया जाएगा, तब तक अपराध खत्म नहीं होगा।
आखिर, बात-बात में नैतिकता की दुहाई देने वाले हमारे देश के नेताओं को कब सदबुद्धि आयेगी? अब तो ऐसा हो गया है कि देश का आम-आदमी नेता नाम से ही घृणा करने लगा है और अगर किसी को गाली देना हो तो बस उसे नेता कह दीजिए फिर देखिए उसके तेवर।
अर्थशास्त्री ग्रेशम के अनुसार, खोटा सिक्का, खरे सिक्के को बाजार से बाहर कर देता है और मौजूदा समय में भारतीय राजनीति में यही देखने को मिल रहा है। ऐसा नहीं है कि भारत में अच्छे लोगों की कमी है और वे राजनीति को सेवा का माध्यम नहीं बनाना चाहते हैं लेकिन राजनीतिक दल उन्हें मौका ही नहीं देना चाहते क्योंकि अच्छे लोगों के आने के बाद लूट-खसोट बंद हो जाएगी और फिर ऐसे राजनीतिज्ञों के लिए राजनीति में कोई आकर्षण नहीं रहेगा? आखिर में, ये तो राजनीति में देश का धन लूटने और अपने हितों के संरक्षण के लिए ही तो आते हैं।
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