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भारत के सच्चे लाल – लाल बहादुर शास्त्री को हमारा नमन

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हरेश कुमार

लाल बहादुर शास्त्री का जन्म उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में 2 अक्टूबर, 1904 को एक अत्यंत साधारण परिवार में हुआ था। उनका वास्तविक नाम लाल बहादुर श्रीवास्तव था। इनके पिताजी शिक्षक थे, जो बाद में भारत सरकार के राजस्व विभाग में क्लर्क बने। शास्त्री जी की प्रारंभिक शिक्षा हरिश्चंद्र उच्च विद्यालय में हुई। काशी पीठ से स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्हें शास्त्री की उपाधि प्राप्त हुई। इसके बाद, वे भारत सेवक संघ से जुड़ गए और यहीं से शास्त्री जी के राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई।

देश की आजादी के बाद गोविंद वल्लभ पंत के नेतृत्व में उत्तरप्रदेश में जब कांग्रेस की सरकार बनी तो शास्त्री जी को गृहमंत्रालय का महत्वपूर्ण प्रभार मिला। आगे चलकर 1951 में वे देश के रेलमंत्री बने। लेकिन दुर्भाग्यवश 1954 में इलाहाबाद में मौनी अमावस्या के दौरान रेल दुर्घटना हुई जिसमें सैकड़ों लोगों की मृत्यु हो गई और फिर हजारों लोग घायल हुए। 1956 में भी कुछ और रेल दुर्घटना हो गई। इसे देखते हुए लाल बहादुर शास्त्री ने नैतिकता के आधार पर अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की 27 मई 1964 को मृत्यु के बाद, लाल बहादुर शास्त्री को देश का दूसरा प्रधानमंत्री बनाया गया।

लाल बहादुर शास्त्री बेहद शांत और शालीन स्वभाव के थे, लेकिन फैसले लेने में वे कभी कोताही नहीं बरतते थे। कुछ ही दिनों के बाद, 1965 में पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण कर दिया। उस समय लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान, जय किसान का नारा दिया था।

शास्त्री जी ने देश के किसानों को एक तरफ जहां अन्न उत्पादन के लिए ललकारा, वहीं दूसरी तरफ सीमा पर तैनात प्रहरियों को देश की रक्षा के लिए हर समर्थन का वादा किया। वे सत्य और अहिंसा के पुजारी थे लेकिन जब देश पर हमले की बात हो तो फिर सैनिकों की हर जरूरत को तत्काल पूरा करने के लिए पीछे हटने वालों में से नहीं थे। कहने का अर्थ कि कोई हमारी सादगी को हमारी कमजोरी ना समझे।

पाकिस्तान के साथ युद्ध के समय अमेरिका पूरी तरह से पाकिस्तान के साथ था लेकिन लाल बहादुर शास्त्री के दृढ़ नेतृत्व के कारण पाकिस्तान को हार का मुंह देखना पड़ा। तत्कालीन सोवियत संघ में उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ समझौते के बाद 11 जनवरी 1966 को उनकी मृत्यु हो गई।
शास्त्री जी को 1966 में मरणोपरांत देश का पहला भारत रत्न पुरस्कार मिला था।

शास्त्री जी के प्रधानमंत्रीत्व काल में देश में खाद्यान की काफी कमी थी उन्होंने देशवासियों से सप्ताह में एक दिन भूखे रहने की अपील की और खुद सप्ताह में दो दिन भूखे रहे। शास्त्री जी की सादगी के कई किस्से मशहूर हैं। एक बार, जब वे बीमार पड़े तो उनकी पत्नी ने शास्त्री जी की मन:स्थिति को भांपते हुए 10 रुपये दिया (जो उन्होंने शास्त्री जी की तनख्वाह से बचा कर रखी थी) कि चिकित्सक से दिखला ले औक अगले दिन ही उन्होंने अपना वेतन दस रुपये कम करा लिया। ऐसे थे शास्त्री जी। और एक आज के राजनेता हैं जो राजनीति में आकर अपने अन्य धंधों को पसारते हैं या मीडिया का सहारा लेकर अपने धंधों को फैलाते हैं।

शास्त्री जी की मृत्यु आज भी एक रहस्य बनी हुई है। कुछ लोगों का कहना है कि उन्हें खाने में जहर दिया गया था, क्योंकि उनका पूरा शरीर नीला पड़ गया था। उनके चिकित्सक जो इस राज से पर्दा उठा सकते थे, उनकी एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई और यह किसी साजिश की तरफ इशारा करता है।

आज के समय में शास्त्री जी जैसे राजनीतिज्ञों की कमी इस देश को काफी खलती है जिनके लिए राजनीति का मतलब देश सेवा था ना कि परिवार की संपत्ति में बढ़ोतरी करना। जैसा कि उनके कई समकालीन नेताओं ने भी किया। शास्त्री जी की सादगी और विनम्रता को हम आज भी याद करते हैं। नहीं तो क्या कारण है जब सारा देश नेताओं और उनके समर्थकों को गालियां देता है तब भी शास्त्री जी जैसे नेता को नमन करता है।

जिस कांग्रेस पार्टी ने गांधी-नेहरू परिवार के सदस्यों के नाम पर समाचार माध्यमों में विज्ञापन पर करोड़ों खर्च किए वही कांग्रेस पार्टी शास्त्री जी के नाम पर कार्यक्रमों के आयोजन में पीछे रह जाती है। इसे चाटुकारिता नहीं तो क्या कहेंगे। माल महाराज का औऱ मिर्जा खेले होली की तर्ज पर कांग्रेस पार्टी और इसका तथाकथित देश सेवा का मतलब नेतृत्व सिर्फ और सिर्फ गांधी और नेहरू परिवार को मानता है।

अभी हाल ही में एक बच्चे के द्वारा सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी के अनुसार, कांग्रेस नीत सरकार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को शहीद नहीं मानती है। ऐसे बलिदानी जिन्होंने आजादी की लड़ाई के लिए युवाओं में जोश भरने के लिए अपने प्राणों की कभी परवाह नहीं की और हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूम गए। क्या देश ऐसे नेताओं को कभी माफ कर सकता है?

आज भी ऐसे शहीदों के परिवार जन फांकाकसी की जिंदगी जीने को मजबूर हैं और आजादी के समय में अंग्रेजों की सहायता करने वाले परिवार जन आज गांधी-नेहरू परिवार की चापलूसी करके मलाई चाट रहे हैं।

शास्त्री जी को एक बार फिर से मेरा सादर नमन।

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