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सिर्फ कहने को हम आजाद हैं?

http://information2media.blogspot.in/2012/04/blog-
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इस देश को आजादी मिले 65 साल हो गए,
लेकिन अभी तक देश के निवासियों को,
जीवन की मूलभूत सुविधायें मयस्सर नहीं है।
सिर्फ कहने को हम आजाद हैं?
किससे करें हम फरियाद अपनी,
यहां तो संतरी से लेकर मंत्री तक,
सब के सब लुटेरे बने बैठे हैं?
जिसको हमने सत्ता सौंपी थी,
बड़े नाज़ से, वो ही आस्तीन का सांप निकला।
आपको स्वतंत्रता है कि आप नेताओं को गालियां दे सकते हैं,
उनकी सभाओं में जूते उछाल सकते हैं।
अब यह उस नेता पर है कि वो,
आपको पुलिस के हवाले करता है
या माफ कर देता है?
लेकिन आपकी बातों को सुनने के लिए,
उसके पास समय कहां है?
आखिर इतना बड़ा देश है, समस्यायें अनंत है।
कहीं घुसपैठिए, देश में घुस रहे हैं,
तो कहीं बम विस्फोट हो रहे हैं।
एक मामला सुलझता नहीं कि दूसरा उलझ जाता है।
सरकार भी क्या करे, बेचारी।
उसे तो मालूम है कि विकास से बात बनने वाली नहीं।
सत्ता में आने के लिए,
उसे जाति, धर्म, प्रांतवाद का ही सहारा लेना होगा।
किसी का बच्चा, भूख से तड़प रहा है,
तो कोई वर्षों से बेकार-बेरोजगार है,
तो किसी को अस्पतालों में इलाज मयस्सर नहीं है?
शिक्षा की बातें बेमानी हो गई हैं,
आखिर, भूखे पेट की चिंता भारी पड़ जाती है।
रिश्ते-नाते सारे देख लिए हमने,
सब के सब, हमारी ही तरह परेशान हैं।
देश के कुछ लोगों की हितों के लिए सरकार परेशान है,
उसे शेयर बाजार के निवेशकों की चिंता है,
उसे चिंता है तो देशी-विदेशी प्रभावशाली लोगों की
जिनके लिए भूखा व नंगा बच्चा,
महज एक तमाशा और कुछ नहीं है।
ऐसे लोग तो, भूखे बच्चों से भी,
उसकी मासूमियत का फायदा उठाने में,
तनिक भी देरी नहीं करते हैं।
देश के नेता चिंतित हैं कि
विदेशियों को कैसे आकर्षित करें,
लेकिन देश में मौजूदा गरीब लोगों के दर्द से,
उसे कोई मतलब ही नहीं।
ऐसे लोग सरकार के लिए,
सिर्फ एक वोट बैंक हैं,
जिन्हें वो घुसपैठियों की मदद से पूरा कर सकता है।
हमारे देश के आजादी के दीवानों ने,
क्या इसी आजादी के लिए,
अपने प्राणों की आहुति दी थी।
कि एक दिन देश में मौजूद शासक,
विदेशियों से भी घातक होंगे
और वो गरीबों की बोटी तक नोच डालेंगे।
यहां तक कि, मरे हुए, जानवरों से भी बदतर
आदमियों के साथ व्यवहार किया जाता है।
अपने लाभ के लिए, हमारे नेतागण,
किसी भी हद तक चले जाते हैं?
उन्हें ना देश की प्रतिष्ठा से मतलब है और ना ही
गरीबों की चीख-पुकार से।
नेताओं को, मतलब है तो सिर्फ अपने वोट से।
हम सिर्फ कहने को आजाद हैं?
हमारी स्थिति पहले से ज्यादा खराब है।
देश रो-रो कर पुकार रहा है।
कहां गए, आजादी के दीवाने,
क्या इसी दिन के लिए,
उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दी थी?

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