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बांग्लादेशी घुसपैठिए और वोट बैंक की गंदी राजनीति

http://information2media.blogspot.in/2012/04/blog-
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हरेश कुमार

फिल्म- देशप्रेमी का यह गीत जिसे आनन्द बख्शी ने शब्दों में पिरोया है और संगीतकार, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने इसे संगतीबद्ध किया है

कोई बाहर वाला अपने घर से हमें निकालेगा

दीवानों होश करो, मेरे देश प्रेमियों ..

आज हर भारतीयों को एक बार फिर से पुकार रहा है और कह रहा है कि इस देश को नेताओं ने अपने वोट की खातिर, जाति, क्षेत्र, संप्रदाय के टुकड़ों में बांट दिया है।

अगर समय रहते हम भारतवासी नहीं जागेंगे तो जो कुछ आज असम के कोकराझाड़ में हुआ है वही कल भारत के किसी अन्य हिस्से में होगा और निर्दोष लोगों की जानें बेवजह जायेंगी। सरकार का प्रतिनिधि निर्लज्जों की भांति राहत शिवरों में जाकर मरने वालों को 5-5 लाख रुपये और घायलों के परिजनों को 2 लाख से लेकर कुछ हजार की सहायता प्रदान कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेंगे। लेकिन इससे समस्या का समाधान नहीं होगा। समस्या का समाधान मुंह मोड़ने से नहीं बल्कि दृढ़ता से निपटने से होता है।

आज जो कुछ असम में हुआ है वह वोट बैंक की राजनीति का परिणाम है। बांग्लादेशी मुसलमानों के अवैध संख्या में प्रवेश के कारण वहां के मूल बोडो आदिवासी समुदाय कई जिलों में अल्पसंख्यक हो गए हैं। और राज्य एवं केंद्र की कांग्रेस सरकार अपने वोट बैंक की खातिर हमेशा से इसे बढ़ावा देती रही है। क्योंकि इन्हीं बांग्लादेशियों के वोट के बूते तो पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट पार्टी ने 3 दशक से अधिक समय तक राज किया।

बांग्लादेश से सटे, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, असम, बिहार के सीमाचंल प्रांत – कटिहार, किशनगंज जैसे क्षेत्रों में काफी समय से मुस्लिम अवैध रूप से भारत में प्रवेश करते रहे हैं और स्थानीय प्रशासन केंद्र सरकार की शह पर हमेशा इस मामले पर चुप्पी साधता रहा है। और मुसलमानों के अवैध वोटों को पाने के लिए, क्षेत्रीय लोग झगड़े-फसाद को बढ़ावा देते रहे हैं।

जिस बांग्लादेश को हमारे वीर जवानों ने अपने जान पर खेलकर आजादी दिलाई और पाकिस्तान के जुल्मों-सितम से मुक्ति दिलाकर एक नए देश के तौर पर विश्व में पहचान दी वही बांग्लादेश अब पाकिस्तान स्थित भारत विरोधी ताकतों के साथ मिलकर, भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने में अपनी सक्रिय भूमिका निभा रहा है। हद तो तब होती है जब बांग्लादेश जिसकी आबादी हमारे देश के छोटे से राज्य, झारखंड (बिहार को तोड़कर बना) से ज्यादा नहीं है, का बांग्लादेश राइफल्स (बीडीआर) भारतीय सीमा रक्षकों (बोर्डर सिक्युरिटी फोर्स) पर बेवजह गोलियां चलाता रहता है और इस कारण से कई निर्दोष जवानों की मौत हो जाती है और भारत की तथाकथित धर्मनिरपेक्ष सरकार इस मामले को दबा देती है।

बांग्लादेश भारत विरोधी ताकतों को ना सिर्फ अपने यहां पनाह देता है बल्कि उसे हर तरह की सक्रिय सहायता पाकिस्तान में मौजूद आकाओं के निर्देश पर मुहैया कराता रहा है। बांग्लादेश की वर्तमान प्रधानमंत्री, शेख हसीना के कार्यकाल में इसमें थोड़ी सी कमी जरूर देखने को मिली है, नहीं तो बेगम खालिदा जिया के कार्यकाल में तो हमेशा सीमा पर तनाव ही बना रहता था।

भारत सरकार की वर्तमान मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के कारण इस देश के कई भागों में ऐसा देखने को आ रहा है कि वहां के मूल निवासी अल्पसंख्यक होते जा रहे हैं और बाहरी लोग बहुसंख्यक होते जा रहे हैं तथा वहां के सभी संशाधनों पर इनका नियंत्रण होता जा रहा है। भारत सरकार को तुरंत अपनी नीति पर विचार करना होगा, वरना आने वाली पीढ़ी इस गलती के लिए कांग्रेस की नीतियों और सिद्धांतों को कभी माफ नहीं करेगी।

एक तरफ, चीन की कम्युनिस्ट सरकार भारत को चारों ओर से घेर रहा है। नेपाल की राजधानी काठमांडू तक लगी सीमा तक चीन ने सड़क मार्ग का निर्माण कर लिया है। बर्मा में भारत विरोधी ताकतें शरण लेती रही हैं और वहां की सैन्य सरकार, चीन के दबाव में इस पर चुप्पी साध लेती है। हां, भूटान में जरूर भारतीय सेना ने घुसकर कार्यवाई की है और असम के आतंकवादियों को पकड़ने में सफलता भी पाई है बाकि कुछ लोग आज भी बांग्लादेश, पाकिस्तान और बर्मा में शरण लिए हुए हैं और भारत की सरकार उसे अपने यहां लाने में पर्याप्त कदम उठाने में नाकाम साबित हुई है।

बांग्लादेशियों का भारत में प्रवेश कोई नया मुद्दा नहीं है। पाकिस्तान से आजादी की लड़ाई के दौरान भारत में प्रवेश करने का जो सिलसिला शुरू हुआ उसे इंदिरा गांधी ने नजरअंदाज किया और उसी का आज परिणाम है कि यह समस्या आज विकराल रूप लेती जा रही है।

आज जो झड़प कोकराझाड़ में हो रही है वही कल असम के किसी और इलाके में होगा। जिस तरह से एक साजिश के तहत, पाकिस्तान ने कश्मीर की घाटी से हिन्दूओं को भगा दिया उसी तरह से एक नई साजिश रची जा रही है। जरूरत है, वोटबैंक की राजनीति को लात मारकर समस्या की जड़ को पहचानना और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुसार, अवैध आप्रवासियों को उनके देश भेजना। वरना एक दिन पूरे देश में इसके विरोध में लोग उठ खड़े होंगे और सरकार को इसे संभालना मुश्किल होगा।

आज तो असम के बांग्लादेश से लगे इलाकों में बांग्लादेश से आए मुसलमानों की संख्या कई क्षेत्रों में वहां की मूल आदिवासी बोडो समुदाय और ईसाई समुदाय के आदिवासियों से भी ज्यादा हो गई है। राज्य सरकार इसे नजरअंजाद करती रही है, क्योंकि बांग्लादेशी मुसलमान एक मजबूत वोटबैंक जो हो गया है। अगर राज्य और केंद्र की मौजूदा सरकार इस पर समय रहते कार्यवाई करती तो इतने निर्दोष लोगों की जानें नहीं जाती।

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