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भारतीय समाज का दोगला रवैया

http://information2media.blogspot.in/2012/04/blog-
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हरेश कुमार
यह हमारे समाज को दोगला रवैया है, जो सदियों से चला आ रहा है। लड़की के ऊपर सारा दोष मढ़ दिया जाता है और लड़कों को महिमामंडित किया जाता है इस देश में। एक औरत अगर लड़के को जन्म ना दे पाती है तो इस देश में उसे तरह-तरह से अपमानित किया जाता है, पुरूषों की दूसरी शादी करा दी जाती है, क्योंकि लड़की बड़ी होकर, शादी के बाद तो दूसरे घर में चली जायेगी और लड़का आगे संतति को जारी रखेगा, कहने का अर्थ है कि खानदान का चिराग रौशन करेगा। शायद, इसका एहसास उसे ही हो सकता है, जिसने इस झेला हो। दोगलापन की निशानी है यह। जबकि, लड़का हो या लड़की के जन्म के लिए महिलायें किसी तरह से दोषी नहीं है। इसके लिए, पूरी तरह से पुरुष क शुक्राणु जिम्मेदार होते हैं।
हमारे शास्त्रों में लिखा है “यत्र नार्यस्तु पूज्यंते तत्र रमन्ते देवता:” जहां नारी की पूजा की जाती है वहां देवता निवास करते हैं।
इस देश में दो बार नवरात्रा के अवसर पर नारी, दुर्गा माता अर्थात शक्ति की पूजा की जाती है और बिडंबना देखिए कि पग-पग पर जहां भी मौका मिले वहीं नारी को अपमानित भी किया जाता है।
कन्या शिशु के जन्म लेने पर घर में मातम का माहौल हो जाता है। यहां तक कि शिक्षित लोग जो अपने आप को समाज में बदलाव का वाहक मानते हैं सबसे ज्यादा कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा देते हैं। वे अपने घरों की बहू-बेटियों के गर्भ में ही पहले जांच कराके कन्या शिशु का गर्भपात करा देते हैं। और इस सबका नतीजा यह हुआ है कि देश में कन्या शिशु का अनुपात गड़बड़ हो गया है।
इसी देश की धरती पर महिलाओं ने मौका मिलने पर, जिंदगी के हर क्षेत्र में कामयाबी के झंडे गाड़े हैं। चाहे वह पहाड़ियों की चोटियों हों या आसमान की बुलंदियां या चिकित्सा या कोई और कॅरियर। फिर भी ना जाने क्यों हमारा समाज लड़कियों को हमेशा से हिकारत भरी निगाहों से देखता है। शायद यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। जिसे खत्म होने में अभी वक्त लगेगा।
अभी पिछले दिनों ही, दो खाप पंचायतों के द्वारा सुनाए गए अलग-अलग फैसलों पर नज़र डालेंगे तो पायेंगे कि किस तरह से लड़कियां असुरक्षित हैं इस देश में। एक तरफ, देश की राजधानी दिल्ली से सिर्फ 45 किलोमीटर की दूरी पर बसा ऑनर किलिंग के लिए कुख्यात, मुस्लिम बहुल, बागपत के आसरा गांव में, मुस्लिमों की 36 बिरादरियों की महापंचायत ने एक तुगलकी फरमान जारी करते हुए कहा कि 40 साल से कम उम्र की कोई भी महिला बाजार नहीं जाएगी और ना ही मोबाइल का इस्तेमाल करेगी। अगर जाना जरूरी है तो सर पर पल्लू डालकर जायेगी। उस पर तुर्रा कि विभिन्न पार्टियों के वरिष्ठ नेताओं ने खाप के इस तुगलकी फरमान का समर्थन भी किया है शायद वोटों के लालच में। इसमें आजम खान और चौधरी अजित सिंह के बेट, जयंत चौधरी का नाम प्रमुख है। ऐसा करने के पीछे, खाप पंचायत का मुख्य उद्देश्य लड़कियों के खिलाफ होने वाले अपराधों पर लगाम लगाना है क्योंकि प्रशासन से तो वे बिल्कुल ही निराश हो चुके हैं।
दूसरी ओर, केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा कि लोकतांत्रिक समाज में ऐसे फरमानों, फतवों या ड्रेस कोड के लिए कोई जगह नहीं है।
खाप पंचायतें का फरमान ज्यादातर विवादों में ही घिरा रहा है। हमेशा वे प्रेम विवाह, एक गोत्र में विवाह करने वालों को मौत की सजा से लेकर गांव व समाज से निष्कासित करने की सजा देते हैं।
दूसरी तरफ, हरियाणा के जींद जिले के बीबीपुर गांव में महिलाओं की खाप पंचायत ने घटते लिंगानुपात को देखते हुए गर्भ में लड़की को मारने वालों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करने की मांग केंद्र सरकार से की है। इसमें शामिल लोगों ने कन्या भ्रूण हत्या को महापाप करार दिया।
पहली बार खाप पंचायत में हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली से कई खापों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया, जिसमें लड़कियों के प्रति हो रहे भेदभाव पर चिंता जताई गई और उपस्थित महिलाओं ने अपनी भावनाओं को मीडिया के सामने खुलकर कहा कि अगर गर्भ में ही लड़कियों को मार दिया जाएगा तो आज जो महिलायें समाज में उच्च पदों पर बैठी हुई है और जिन्होंने अनुकरणीय कार्य किया है, क्या वे संभव थे और फिर अगर इसी तरह से कन्या भ्रूण हत्या जारी रहा तो एक दिन ऐसा भी आयेगा कि लड़कों की शादी के लिए लड़कियां मिलनी मुश्किल हो जायेगी? इस पर तत्काल सोचने की जरूरत है।
उल्लेखनीय है कि हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली में बालक-बालिकाओं का लिंगानुपात देशभर में सबसे कम है और यह चिंता का विषय है। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री, अंबिका सोनी ने जींद में हुए खाप पंचायत के इस फैसले का स्वागत किया है। हरियाणा के मुख्यमंत्री ने इस फैसले का स्वागत करते हुए प्रत्येक गांव को एक करोड़ रुपये देने की घोषणा की है।
बदलते दौर में, कुछ जगहों पर तो महिलाओं ने खुले में शौच जाने से इंकार किया है और यहां तक कि इसकी वजह से हाल में कई शादी के रिश्ते भी टूटे हैं। मीडिया में ख़बर आने के बाद, सुलभ शौचालय के प्रमुख, बिंदेश्वर पाठक ने ऐसी महिलाओं को सम्मानित किया और कहा कि ऐसी महिलायें बदलाव की वाहक है।
देश के किसी भी हिस्से में महिलाओं/लड़कियों/बच्चियों के खिलाफ दिन-प्रतिदिन होने वाले अत्याचार/दुर्व्यवहार को लें। पुलिस व प्रशासन की भूमिका सदा संदेह में रहती है और पुलिस कभी भी समय पर नहीं पहुंच पाती है और अगर पहुंच भी गई तो कार्यवाई करने में इतना देरी करती है कि सारा कुछ एक तमाशा बन कर रह जाता है। ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण अवसरों पर कुछ पुलिसकर्मी तो मजे लेने से भी बाज नहीं आते और बजाए कि पीड़ित को सहायता दें वे उसे ही घटना के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं, शायद ये सब हमारी मानसिकता बन गई है, जैसा कि बहुत से लोगों ने कहा कि गुवाहाटी में पीड़ित लड़की बार में गई थी। देश चाहे कितनी भी आर्थिक तरक्की कर ले लेकिन हमारा समाज अभी भी इतना पिछड़ा हुआ है कि वह लड़कियों के खुलेपन को आसानी से स्वीकारने के लिए तैयार नहीं। इसके बावजूद कि लड़कियां देश-विदेश में विभिन्न संगठनों में तमाम उच्च पदों पर कार्यरत है।
चाहे असम के गुवाहाटी में घटी घटना हो या कहीं और हर जगह लोग लड़कियों पर कमेंट्स कसने से बाज नहीं आते।
जहां कहीं भी शोहदों को मौका मिलता है वे लड़कियों से छेड़खानी करने से बाज नहीं आते हैं चाहे वह दिल्ली, मुंबई जैसा महानगर हो या कोई छोटा सा कस्बा। लेकिन फर्क तब आता है जब यह बात सोशल मीडिया जैसे फेसबुक या ट्विटर या यूट्यूब पर आ जाती है। लड़कियों की अश्लील तस्वीरें सहित अंतरंग संबंधों को यूट्यूब पर डाल दिया जाता है, उसे ब्लैकमेकिंग की जाती है। पुलिस-प्रशासन से भी पीड़ित पक्ष को कोई सहायता नहीं मिल पाती है। और कई बार ऐसा देखा जाता है कि पीड़ित पक्ष/लड़की समाज में अपनी बेइज्जती बर्दाश्त नहीं कर पाती है और अपनी जीवनलीला को समाप्त कर देती है, इसके लिए दोषी कौन है हम या हमारा समाज।
आप दिल्ली जैसे शहरों में ही देख लीजिए। चाहे आप मेट्रो में यात्रा कर रहें हो या दिल्ली परिवहन निगम की बसों में या अपने वाहन से। लड़कियां कहीं भी सुरक्षित नहीं है।
उस पर मीडिया ऐसे मामलों को इस तरह से उठाता है जैसे कोई फिल्मी मसाला हो। उसे बस अपने टीआरपी की चिंता रहती है। कई बार मीडिया में लड़की की पहचान जाहिर होने के बाद से ऐसा देखने में आया है कि पीड़ित लड़की अपने को अपमानित महसूस करती है और फिर वही होता है जिस का डर होता है। एक फूल खिलने से पहले ही खत्म हो जाता है। उसकी दुनिया नष्ट हो जाती है।
इसी समाज में, आधुनिक समय में कल्पना चावला, सानिया मिर्जा, सायना नेहवाल से लेकर पुराने जमाने में कैप्टन लक्ष्मी सहगल एवं मिथिला की धरती पर मंडन मिश्र की पत्नी जिन्होंने आदि शंकराचार्य तक को शास्त्रार्थ में हराया था, पैदा हुई हैं। इसी समाज में सीता माता पैदा हुई है।
आखिर लड़कियों के प्रति होने वाले भेद-भाव को हम कब तक खत्म करेंगे। क्यों ना इसके खिलाफ एकजुट होकर हम सभी लड़कियों की उचित शिक्षा एवं उनके खिलाफ होने वाले अत्याचारों के खिलाफ एक सशक्त आवाज उठायें।

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