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हरेश कुमार
कभी-कभी ज्यादा होशियार होना भी खतरनाक होता है। प्रणव दा की काबिलियत के कारण सोनिया गांधी उसे अपने पुत्र राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने की राह में हमेशा से कांटा मानती रही थीं।
तभी तो, सोनिया ने एक ऐसे गैर-राजनीतिक व्यक्ति को प्रधानमंत्री के पद पर बैठाया हुआ है जो अपने बूते कोई चुनाव नहीं जीत सकता है और ना ही जिसकी कोई राजनीतिक महात्वाकांक्षा है, और ना वो किसी राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखता है, जिससे कि आगे चलकर कोई खतरा महसूस ना हो और कांग्रेस पार्टी पर गांधी परिवार की पकड़े मजबूत बनी रहे। प्रधानमंत्री पद पर बैठे मनमोहन सिंह दूसरे धृतराष्ट्र हैं जिसे सोनिया और गांधी परिवार के अलावा ना देश का हित दिखता है और ना ही कोई घोटाला।
पल्टू दा को हटाने के लिए सोनिया ने एक ऐसा तरीका निकाला जिससे तीर एकदम सही निशाने पर जा लगा और शिकारी खुद ही शिकार हो गया। कहने का अर्थ है कि आगमी चुनाव में अपने पुत्र के लिए सोनिया ने रास्ता साफ कर दिया। अब इस उम्र में पल्टू दा को राष्ट्रपति भी बना दिया उनकी हसरत – “तू ना सही, कोई और ही सही, यानि प्रधानमंत्री ना बन सका तो कोई बात नहीं राष्ट्रपति ही सही”, बनाकर पूरी कर दी। दादा भी खुश और रास्ते का कांटा भी साफ।
गौरतलब है कि पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी की हत्या के बाद, राजीव गांधी और दादा (प्रणव मुखर्जी) एक ही विमान में आ रहे थे औऱ उन्होंने मंत्रिमंडल में वरिष्ठता के आधार पर प्रधामंत्री बनाए जाने की इच्छा जाने-अनजाने में व्यक्त कर दी थी, जिसके बाद राजीव गांधी के करीबी लोगों ने उन्हें प्रणव दा के बारे में गलतफहमी पैदा कर दी थी और इसके कारण उन्हें कांग्रेस पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था।
इससे पहले, दो बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री के तौर पर गुलजारी लाल नंदा बैठे थे और वे मंत्रिमंडल में वरिष्ठता के कारण ही इस पद को सुशोभित कर सके थे। प्रणव दा का भी यही मत था। लेकिन शायद भाग्य को उस समय यह मंजूर नहीं था।
कांग्रेस से निकाले जाने के बाद प्रणव दा ने एक अलग पार्टी बना ली थी फिर मालदा स्टेशन पर, एक मुलाकात के बाद, राजीव गांधी और प्रणव दा के बीच गिले-शिकवे दूर हए और वे एक बार फिर से कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। और विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए कांग्रेस पार्टी के लिए कई मौकों पर संकटमोचक का काम किया।
अब पार्टी का यह संकटमोचक राष्ट्रपति के पद पर बैठ गया है, हां प्रतिभा पाटिल के राष्ट्रपति बनने से इस पद की जो गरिमा गिरी थी वो थोड़ी उठी जरूर है लेकिन प्रणव दा और उनकी कार्यशैली पर भी कई बार उंगलियां उठ चुकी है। उन पर भी भ्रष्टाचारियों को बचाने का आरोप है और ये सिर्फ महज एक आरोप ही नहीं है। राष्ट्रपति पद पर बैठने वाले लोगों को देश को सच्चाई बतानी चाहिए।
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