- 168 Posts
- 108 Comments
हरेश कुमार
पता नहीं क्यों, बार-बार मेरे मन में नेताओं और आजकल के जानवरों (खास करके आवारा/गली-मुहल्ले में घूमने वाले) में समानता नजर आने लगी है।
नेता लोग चुनाव के समय तो वादे बहुत करते हैं, ऐसे लगता है जैसे कि तारे जमीं पर बस अब आने ही वाले हैं। कुछ दिनों की बात है सारी समस्यायें फुर्र, लेकिन नेता जी चुनाव के बाद ऐसे गायब हो जाते हैं, जैसे गदहे के सिर से सींग गायब हो जाता है।
पुराने जमाने में जब कौए ज्यादा बोलते थे तो लोग कहते थे कि कोई मेहमान आने वाला है। कौओं का बोलना मेहमान के आने का सूचक होता था, लेकिन आज के जमाने में नेताओं का आना चुनाव का सूचक हो गया है। जैसे नेताजी का दौरा प्रारंभ हो जाए, समझ जाइये कि चुनाव जल्द ही होने वाले हैं।
नेताजी की नजर बगुले या दूसरे शब्दों में यूं कहिए गिद्ध की तरह होती है। बगुला मछली को पकड़ने के लिए, पानी के किनारे एकटक देखता रहता है और जैसे ही उसे कोई मछली दिखाई देती है वो झट से वार कर देता है। और गिद्ध की नजर तो आपको पता ही होगा कितने दूर तक वो देखता है। नेताजी गिद्ध की नजर रखते हैं अपने कार्यकर्ताओं और सरकारी योजनाओं की ठेकेदारी में कमीशन पर।
जैसे ही कोई कार्यकर्ता ज्यादा भाव खाने लगे तो बस उसे दूसरी पार्टी का एजेंट करार देते हैं और पार्टी से निकाल देते हैं या अगर, नेताजी के क्षेत्र में सरकारी योजनाओं की ठेकेदारी में उनका कमीशन समय पर नहीं पहुंचा तो फिर नेता जी अपने समर्थकों के साथ-साथ धरने पर बैठ जाते हैं। सरकार के निकम्मेपन को जी भर के कोसते हैं और क्षेत्र की जनता उनके साथ होती है इस प्रकरण में। हों, भी क्यों नहीं आखिर नेता जी क्षेत्र की समस्याओं को लेकर ही तो धरने पर बैठे हैं?
आज के जमाने में, किसी भी पार्टी या नेतृत्व से नेताजी का कोई लगाव नहीं होता है। बस उन्हें उसी पार्टी का टिकट चाहिए होता है जिसके पास क्षेत्र की जातियों का समर्थन और बाहुबल मौजूद हो। इस अवसर पर, नेताजी उक्त पार्टी के टिकट को पाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करते हैं। करें भी क्यों नहीं? आखिर किस दिन के लिए ये पैसा कमाया है।
इतना सारा पैसा कोई मेहनत-मजूरी से तो पूरी उम्र में कमा नहीं सकता है। इसमें कुछ हिस्सा, ब्लैकमनी तो, कुछ नेताजी की कृपा से प्राप्त ठेकेदारी तो कुछ इलाके के बिल्डरों, माफियाओं का भी होता है। नेताजी चुनाव जीतने के बाद सभी को उसका हिस्सा सूद समेत वापस भी कर देते हैं। इस मामले में वे वादे के पक्के होते हैं। भाई हों भी क्यों ना अगला चुनाव भी तो लड़ना होता है। क्षेत्र की जातिय समीकरण को देखते हुए, जिस भी जाति समूह का बहुमत उस क्षेत्र में होता है उस जाति के किसी दबंग को पार्टी की तरफ से किसी सरकारी योजना का प्रधान बना दिया जाता है और उस जाति का वोट पक्का।
उदाहरण के लिए आपने अभी संपन्न हुए राष्ट्रपति के चुनाव में देखा होगा कि किस तरह से विरोधी पार्टियों की सरकार तक को साधा गया। कुछ को सीबीआई का डर दिखा कर जिनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला है तो कुछ को उनके राज्य के विकास के लिए जरूरी योजनाओं की मंजूरी देके।
उदाहरण के लिए, आप बिहार को ही ले सकते हैं, बिहार की सरकार ने पिछले पांच सालों से स्टेट हाईवे से लेकर नेशनल हाईवे पर काफी पैसा लगाया था जिसे केंद्र सरकार नहीं दे रही थी, इसके अलावा पटना में गंगा नदी पर बना पुल भी अब काफी पुराना हो चुका है और जर्जर स्थिति में है इसके स्थान पर दूसरे पुल के निर्माण के लिए बिहार सरकार कब से मांग रही है लेकिन मंजूरी नहीं मिल रही थी।
बिहार में एक भी केंद्रीय विश्वविद्यालय नहीं है, बिहार सरकार की इच्छा थी कि महात्मा गांधी की कर्मभूमि मोतिहारी (जहां से महात्मा गांधी ने गोरे अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत की थी) में एक केंद्रीय विश्वविद्यालय खोला जाए लेकिन केंद्रीय मानव संशाधन विकास मंत्री हमेशा अडंगा लगाते रहे और यहां तक कि उन्होंने गया में केंद्रीय विश्वविद्यालय खोलने के लिए स्थानीय जनता एवं अन्य दलों के नेताओं को उकसाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ा और सेना की जमीन पर इसके निर्माण के लिए अपनी तरफ से तैयारी भी शुरु कर दी थी। लेकिन बिडंबना देखिए कि राष्ट्रपति का चुनाव क्या आया, बिहार में जनता दल यूनाइटेड के विधायकों एवं सांसदों के वोट पाने के लिए, एक नहीं दो-दो विश्वविद्यालय मोतिहारी और गया में स्थापित करने की मंजूरी दे दी और इसके अलावा, केंद्र सरकार के द्वारा पटना में गंगा नदी पर एक नए पुल की भी मंजूरी दी गई है, तथा बिहार सरकार की लगभग हर मांग को तत्काल मांग लिया गया है।
यह तो एक छोटा सा उदाहरण है कि किस तरह से चुनाव को प्रभावित किया जाता है। पिछले दिनों कोबरा पोस्ट और आईबीएन7 के एक स्टिंग ऑपरेशन में, उत्तर-प्रदेश के एक मेयर ने यहां तक स्वीकार किया था कि उसने इसके लिए 27 करोड़ रुपये तक खर्च किए हैं। ऐसे माहौल में कोई आम-आदमी कैसे सोच सकता है चुनाव लड़ने के बारे में।
हम बात कर रहे थे नेताओं और जानवरों में समानता के बारे में। तो सबसे पहले तो नेता जी और कुत्तों में एक जो समानता पाई जाती है वह है नेता जी अपनी वोट के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं और जाते रहते हैं। उन्हें किसी के जीने-मरने से कोई फर्क नहीं पड़ता है, उन्हें तो बस अपनी जीत दिखाई देती है। इसके लिए चाहे क्षेत्र में दंगा-फसाद करवाना हो या विभिन्न समुदायों के बीच मार-पीट। नेताजी इस पुनीत कार्य में हमेशा से आगे रहते हैं।
जैसे कुत्ते की दुम को आप किसी रॉड से बांध कर रख दो और रॉड टेढ़ा हो जाएगा लेकिन कुत्ते की दुम सीधा नहीं होगी वैसी ही आज के नेताओं से हम सुधरने की उम्मीद करते हैं, जो बेकार है। ये कभी सुधरने वाले नहीं है।
देश इनकी हरकतों के कारण ही आजादी के इतने दिनों बाद भी सही तरीके से आम-आदमी के लिए मूलभूत सुविधाओं का इंतजाम नहीं कर सका है। एक तरफ, नेताजी को जीतते ही सारी सुविधायें 24 गंटे के अंदर में पहुंच जाती है। और दूसरी तर आज भी देश में ऐसे गांव हैं जहां पर ना तो कोई चिकित्सा सुविधा उपलब्ध है और ना ही शिक्षा सुविधा या परिवहन सुविधा अन्य सुविधाओं की बात तो करना ही व्यर्थ है?
नेताजी की दूसरी खूबी यह होती है कि वे गिरगिट की तरह रंग बदलने में माहिर होते हैं और चुनावी संभावनाओं को देखते हुए पाला बदलने में जरा भी देरी नहीं करते। शायद गिरगिट भी इनके इस करतब को देखकर शर्मा जाए। इसमें हर पार्टी के नेता का चाल-चेहरा और चरित्र लगभग एकसमान ही होता है। बस थोड़ा-बहुत का फर्क ज्यादा का नहीं। सब एक जैसे ही हैं। वोटों के सौदागर। इनकी नजर में देशद्रोही से लेकर देशभक्त तक एक ही श्रेणी में होते हैं। उदाहरण के लिए आप बाटला हाउस गोली कांड को ले सकते हैं। किस तरह से शहीद हुए मदन मोहन शर्मा पर उंगली तक उठायी गई थी और आतंकवादियों को हमारे नेताजी शहीद बनाने पर तुले हुए थे. ऐसे ना जाने कितने उदाहरण भरे-पड़े हुए हैं।
चुनाव जीतते ही नेताओं को पता नहीं कुबेर का कौन सा खजाना हासिल हो जाता है कि उनकी आमदनी दिन-दूनी रात-चौगुणी होने लगती है और मजाल है कि कोई उंगली उठाये। इस देश के नेताओं का देश पर बहुत ज्यादा उपकार है। देश इनके उपकारों तले दबे जा रही है। आखिर हो भी क्यों नहीं? जिस देश की आधी से ज्यादा आबादी को दो वक्त की रोटी नसीब नहीं होती है उस देश के नेताओं का लाखों-करोड़ों का कमीशन का रुपया विदेशी बैंकों में बेनामी पड़ा हुआ है।
कोयला आवंटन से लेकर 2जी घोटाला, राष्ट्रमंडल घोटाला, आदर्श घोटाला से लेकर घोटालों की एक पूरी श्रृंखला है पर मजाल है कि कभी किसी नेताजी को किसी आर्थिक घपले से जुड़े मामले में सजा हुई हो, नेताजी की कृपा से जांच सीबीआई को सौंप दी जाती है या फिर कमीशन-दर-कमीशन बैठा दी जाती है और उस कमीशन की रिपोर्ट कभी जनता को मालूम नहीं होता। नेताजी फिर अगले घोटाले की तैयारी में लग जाते हैं। अरे, नेताजी का समर्थन जो सरकार को है।
नेताजी की इन हरकतों से परेशान होकर जानवरों ने आजकल एक भाईचारा समिति बनाई है जो हर गली-मुहल्ले में कार्य करने लगी है जिससे कि नेताओं की इन हरकतों पर समय रहते लगाम लगाई जा सके नहीं तो एक दिन ये जानवरों को पीछे छोड़कर ओलंपिक पदक की दौड़ में आगे हो जायेंगे।
जय हिन्द और जय देश के वर्तमान नेताजी।
Read Comments