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संवेदनहीन पुलिस और हमारा समाज

http://information2media.blogspot.in/2012/04/blog-
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हरेश कुमार

आज हमारा समाज हर तरह से तरक्की की राह पर है। अगर हम तुलना करें तो, पहले से बेहतर, शिक्षा, स्वास्थ्य व अन्य सुविधायें आम जनों को उपलब्ध होने लगी है। लेकिन हम उतने ही संवेदनहीन होते जा रहे हैं। आखिर इसका क्या कारण है? कोई दिन ऐसा नहीं गुजरता जब कहीं ना कहीं किसी ना किसी मासूम या गरीब की इज्जत से खिलवाड़ किया जाता है और हम चुपचाप एक तमाशाई की तरह देखते रहते हैं। इस तरह से अपराधियों की हम हौसलाअफजाई करते हैं और उन्हें बढ़ावा देते हैं। अगर हम इन्हें कानून के हवाले कर दें या इन्हें इनके किए की सजा दिलाने के लिए एकजुट हो जायें तो इसमें कोई शक नहीं कि पुलिस-प्रशासन को इस पर गंभीरतापूर्वक कार्यवायी करनी होगी और किसी अबला की इज्जत लूटने से बच जाएगी या किसी की जान समय रहते बचाई जा सकेगी।

पिछले दिनों की घटनाओं ने हमें बहुत ज्यादा आहत कर दिया है। चाहे आप बहुचर्चित गुवाहाटी घटना को लें, (जिसमें ग्यारहवीं की एक 17 वर्षीय छात्रा, जो अपने ब्यॉयफ्रेंड के जन्मदिन की पार्टी मनाकर एक बार से लौट रही थी, मौका पर उनके कुछ दोस्त भी ते लेकिन या तो वे सभी भाग गए या वे भी भीड़ का हिस्सा बनकर मजे लूटते रहे।) तो आप अगर सूक्ष्म विश्लेषण करेंगे तो पायेंगे कि इसमें वहां का मीडिया चैनल का संपादक व रिपोर्टर अपने चैनल व समाचारपत्र के लिए फुटेज बनाने के लिए, जिससे कि वो समाचार चैनल पर चलाये और एक सनसनीखेज घटना बताकर दिखा सके। इससे उसके चैनल की चर्चा देश-विदेश में हो गई जिसके लिए उसे ना जाने कितने पापड़ बेलने पड़ते। एडवरटाइजिंग कंपनियों को कितने खर्चे देने होते और उसे इस घटना से एक दिन में हासिल हो गया। ये मीडिया वालों की गिरती सोच का परिचायक है। जिसे चैनल के प्रचार के लिए एक लड़की के इज्जत को ताड़-ताड़ करते हुए दिखाना वाली फूटेज चाहिए थी और इसके लिए उसके कर्मियों ने मौका देखकर भीड़ को उकसाया। और आदमी के अंदर का वहशी जानवर मौका देखकर उसके कपड़े फाड़ने लगा और यहां तक कि उस लड़की से रेप की भी कोशिश कीगई। आखिर हम और हमारा समाज कहां जा रहा है।

गुवाहाटी के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, अपूर्वा जीवन बरुआ ने अपने बयान में कहा था कि ग्यारहवीं कक्षा की इस छात्रा के साथ हुए बर्ताब को काफी बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया था। बरुआ नेतो यहां तक कहा था कि पुलिस कोई एटीमएम मशीन नहीं है कि जब चाहा, जहां चाहा उपयोग कर लिया। इससे आप पुलिस की मानसिकता को समझ सकते हैं।

महिला आयोग की टीम जिस तरह से गुवाहाटी प्रकरण की जांच करने गई थी, वो भी अपने आप में एक हास्यास्पद औऱ घृणित है। उन्हें देखकर तो ऐसे लगता है महिला आयोग की टीम जांच करने नहीं बल्कि पर्यटन को बढ़ावा देने गई थी। तस्वीरों से यह बात साफ होती है और फिर, महिला आयोग की टीम के एक सदस्य, अलका लांबा ने अपने सोशल साइट्स पर लड़की की पहचान को भी उजागर कर दिया। हालांकि, ये बात अलग है मीडिया में छिछालेदारी से बचने के लिए फिलहाल अलका लांबा को महिला जांच टीम से हटा दिया गया है।

दूसरी घटना, उत्तर प्रदेश के सीतापुर के रेउसा की है जहां गांववालों को मालूम हुआ कि एक लावारिस लाश कहीं से बाढ़ में बह करके आई है और उन्होंने पुलिस-प्रशासन को इसके बारे में सूचित किया। डीएसपी जयप्रकाश सिंह दल-बल के साथ आए और शव को जूते से हटाते मीडिया कर्मियों द्वारा कैद कर लिए गए। शायद उन्हें मालूम नहीं था कि वहां पर कुछ मीडियाकर्मी भी मौजूद हैं, जो इस घटना की कवरेज कर रहे हैं। इस देश के पुलिसकर्मियों से आप ऐसे ही व्यवहार की उम्मीद कर सकते हैं। उनसे आप किसी मानवीय व्यवहार की उम्मीद करते हैं तो ये आपकी बेवकूफी है।

इस देश की पुलिस ऐसी है कि अगर साहब यानि कि किसी बड़े पुलिस पदाधिकारी या नेतागण का गर कुत्ता कहीं गुम हो जाये या उनके किसी जानने वाले घर भी अगर कुछ हो जाए तो यही पुलिस-प्रशासन दिन-रात एक करके अपराधियों को खोज/पकड़ लाती है और मजाल है कि किसी गरीब के साथ कुछ अनहोनी हो जाए और उसकी रिपोर्ट थाने के रोजनामचे में दर्ज हो जाए, जब तक कि उपर से आदेश ना आए, आखिर उसे भी अपने इलाके में अपराधों को कम दिखाना जो है। ऐसी स्थिति में कोई क्या कर सकता है।

पड़ोस में किसी के घर अपराधी दिन में खुले आम घुसकर लड़कियों/महिलाओं से छेड़छाड़ कर जाते हैं और मजाल है कि कोई उसे ऐसा करने से रोके। अपराधी इस तरह दूसरे दिन आपके घर भी घुस कर यही व्यवहार करते हैं और आपके पड़ोसी मजे लेते हैं। क्या हम एकजुट होकर इन अपराधियों को पकड़ नहीं सकते हैं, इन्हें इनके किए की सजा नहीं दे सकते हैं।

लेकिन यह हमारे समाज का दुर्भाग्य है कि हम ऐसा कुछ भी नहीं करते।

दूसरी घटना भी सीतापुर, पिसवान पुलिस स्टेशन की है 2 अप्रैल को अगवा की गई एक 16 साल की लड़की के साथ पहले तो अपहर्ताओं ने रेप किया औऱ फिर पुलिस व चौकीदार पर आरोप है कि उसने भी पांच दिनों तक लड़की की अस्मत से खेला और इस सब के बीच पीड़ित का बाप बच्ची की रिहाई/खोज के लिए थाने पर आत्मदाह की चेतावनी से लेकर वरिष्ठ पुलिस ऑफिसर्स से लगातार संपर्क करता रहा लेकिन स्थानीय मीडिया में ख़बर आने के बाद इस मामले में कार्यवायी की गई और 5 जून को गांव के चौकीदार ने लड़की के बरामद होने की बात की लेकिन इस बीच, एसआई और चौकीदार ने मिलकर एक बार फिर से लड़की की अस्मत से खेला और अबी तक लड़की की कोई मेडिकल जांच नहीं हुई है।

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