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सोशल मीडिया पर हंगामा क्यों?

http://information2media.blogspot.in/2012/04/blog-
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हरेश कुमार, वरिष्ठ संवाददाता, समाचार4मीडिया.कॉम

पुराने जमाने में राजाओं-महाराजाओं के यहां कुछ ऐसे सेवक/ चारण होते थे जो सदा उनके गुण गाते रहते थे और बदले में राजा उन्हें उचित इनाम दिया करते थे। ऐसे लोग राजा के गुणगान के लिए हर समय प्रयासरत रहते थे।

आज के जमाने में भी ऐसे प्राणी/तत्व पाए जाते हैं, जो शासक वर्ग का गुणगान करने में ही अपनी सारी उर्जा लगा देता है। बस अंतर यह हो गया है कि राजे-रजवाड़ों का जमाना अब नहीं रहा और उनके बदले में भारत सहित अधिकांश देशों (कुछ देशों को छोड़कर) प्रजातंत्र आ गया। लोगों ने अपने मतों का प्रयोग करके नेताओं को गद्दी सौंपी और वे राज्य के नए मालिक हो गए। ना उन्हें जनता के हितों की फिक्र है और ना ही कोई चिंता। पांच बरस के बाद, फिर से वोट मांगने जब उन्हें हर दरवाजे पर दस्तक देनी होती है तो वे तरह-तरह के बहाने बनाते हैं और फिर अपने पुराने संबंधों की दुहाई देते हैं।

भारत के लोग बड़े ही दयालु किस्म के हैं और वे पुराने गिले-शिकवे भूलकर फिर से उन्हें अपना नुमाइंदा बना देते हैं। कुछ लोगों का तो मानना है – कोउ नृप होए, हमें का हानि। और ऐसे ही लोग देश को अंधकार की ओर ले जाने में अपनी महती भूमिका निभाते हैं। आज देश में हमारी नुमाइंदगी करने वाले नेता, लूट-खसोट में व्यस्त हैं। कई तो ऐसे नेता हैं जिन पर हत्या, बलत्कार, लूट-अपहरण, भ्रष्टाचार के अलावा डराने-धमाकाने व जमीन हड़पने के आरोप हैं और वे कभी सत्य नहीं हो पाते क्योंकि पुलिस, अपराधी, व्यवसायी का गठजोड़ देश में कार्य कर रहा है जो अपने तरह से कानूनों को परिभाषित करता रहता है। अगर किसी ने भी इस गठजोड़ पर उंगली उठाने की कोशिश की तो वे उंगली उठाने वालों की सारी जन्मपत्री खोल कर रख देते हैं या दूसरे तरीके से इतना परेशान करते हैं कि फिर से कोई उन्हें आखें दिखाने की जुर्रत ना कर सके।

लेख में, ऊपर मैंने राजा-महराजाओं के चारण की चर्चा इसलिए की है कि आज प्रजातंत्र होने के बावजूद कुछ नेताओं को अपनी आलोचना बर्दाश्त नहीं हो रही है। उन्हें यह पसंद नहीं है कि ऐसा कोई साधन आम लोगों की पहुंच में हो जिस पर वो उनके गलत कार्यों पर टीका-टिप्पणी कर सके और इसलिए ही सारे के सारे तथाकथित नेता वर्ग के लोग सोशल मीडिया के पीछे पड़ गए हैं क्योंकि राज्य समर्थित मीडिया व निजी मीडिया को एक हद तक तो वो साध लेते हैं लेकिन ये मुआ सोशल मीडिया नाम का हथियार जबसे आम-आदमी की पहुंच में आ गया है कि कोई भी ख़बर हो तुरंत उस पर प्रतिक्रिया होनी शुरू हो जाती है। औऱ यही नेताओं की परेशानी का कारण भी है। सो, वे हर हाल में इस पर प्रतिबंध लगाने की सोच रहे हैं।

नहीं तो क्या कारण है कि जो ममता बनर्जी, वामदलों के शासन के खिलाफ सड़कों पर हर तरह के आंदोलन और मां, मानुष और माटी का नारा दिया करती थीं वही गद्दी मिलने के कुछ दिनों के बाद ही बदल गई। उन्हें अपनी आलोचना पसंद नहीं है। उनके खिलाफ एक शब्द बोलने वाला भी विरोधी की श्रेणी में आता है और वे उसे तुरंत जेल में डालने का आदेश दे डालती हैं।

अब राज्य के निवासियों को ममता बनर्जी से पूछना पड़ेगा कि क्या खाना, क्या पहनना और यहां तक कि किससे संबंध स्थापित करना है। हद हो गई है।

शायद ममता बनर्जी को धोखा हो गया है। उसे मालूम नहीं है कि उससे पहले इस गद्दी पर कोई और शख्स भी था जिसे राज्य की जनता ने गद्दी से उतार दिया।

पूर्व प्रधानमंत्री, दिवंगत राजीव गांधी को भी इस देश की जनता ने प्रचंड बहुमत दिया था लेकिन जब वे जनता की उम्मीदों पर ख़रे नहीं उतर सके तो अगले चुनाव में जनता ने उन्हें नकार दिया। ये और बात है कि वे चुनावों के दौरान ही आतंकवादी गतिविधियों के शिकार हो गए। देश को उन्होंने कंप्यूटर क्रांति का अमूल्य उपहार दिया था और आज देश उनके सपनों को पूरा कर रहा है और विश्व भर में कंप्यूटर क्रांति का अगुआ देश बन गया है।

हम बात कर रहे हैं कि कुछ राज्यों के नेता अपना गुणगान करने के लिए राज्य के पैसों पर चैनल, समाचारपत्र और पत्रिका लॉन्च करना चाहते हैं जिससे जनता को दिग्भ्रमित किया जा सके। जनता को वही दिखाया जाए जो शासक वर्ग दिखाना चाहता है। यानी कि राज्य सरकार की जय-जयकार।

आज के इंटरनेट के युग में शायद ऐसी कोई घटना हो जिस पर आप रोक लगाने की सोच सकते हैं। अगर आपने कोई एक रास्ता बनाया तो लोग तुरंत ही दूसरा रास्ता अख्र्तियार कर लेते हैं। इसलिए, शासक वर्ग को चाहिए कि वो विकास के कार्यों पर ध्यान दे। राज्य की जनता इतनी मूर्ख नहीं है कि वो बहकावे में आकर कोई भी खबर पर विश्वास कर लेगी, अगर जनता ऐसा कभी करती है तो वो अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारती है।

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