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नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू में समानता

http://information2media.blogspot.in/2012/04/blog-
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हरेश कुमार

बिहार के मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन करके सत्ता में आए हैं और यह बात सौ फीसदी सही है कि उन्हें वर्तमान परिस्थितियों में भाजपा के समर्थन की जरूरत नहीं और वे इसके बिना भी अपनी सरकार का कार्यकाल पूरा कर सकते हैं। लेकिन बिहार की जनता उनके इस कदम को कभी माफ नहीं करेगी।

अगर नीतीश कुमार को यह भ्रम हो गया है कि वे बिहार में एकला चलो की नीति अपना कर अपनी सरकार चला लेंगे तो तो अगले चुनाव में उनकी स्थिति फिर पुनर्मुषिको भव यानि शुरुआती दिनों वाली (जनता दल में फूट पड़ने औऱ लालू यादव से अलग होने के बाद उन्होंने समता पार्टी का गठन किय़ा था) समता पार्टी वाली हो जाएगी और फिर से ज्यादा से ज्यादा 10 से 12 सीटों या उससे भी कम पर आ जायेंगे, क्योंकि उनका मुख्य वोट बैंक तब कुर्मी और कोइरी जाति ही रह जाएगी, अन्य जातियां उनसे उसी तरह से मुंह फेर लेगी, जिस तरह लालू यादव से फेर चुकी है।

नीतीश कुमार एक बार आजमा कर देख लें। इस देश ने इंदिरा गांधी को भी जमीन पर ला दिया था। राजीव गांधी को भी उसकी असली औकात बता दी थी।

नीतीश कुमार मुस्लिम वोट बैंक का गंदा खेल खेल रहे हैं और वे उन्हें लगता है कि इस तरह से वे अगली बार भी राज्य में उसी तरह से आ जायेंगे जैसे दो बार से आ रहे हैं।

भारतीय जनता पार्टी के साथ सहयोग करके बनी गठबंधन सरकार में शामिल होकर नीतीश कुमार केंद्रीय मंत्री बने और इसका जमकर लाभ लिया और आज वे उसी भाजपा को न सिर्फ नसीहत दे रहे हैं बल्कि उसके सदस्यों को तोड़कर अपनी पार्टी में शामिल कर रहे हैं।

भारतीय जनता पार्टी मौजूदा हालात को देखते हुए इस पर शांत है लेकिन अगर नीतीश कुमार इसी तरह कांग्रेस के साथ याराना संबंध निभाते रहे तो ये दोस्ती अब ज्यादा दिनों तक चलेगी नहीं।

बिहार के मुख्यमंत्री, नीतीश कुमार, आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, चंद्रबाबू नायडू की राह पर चल रहे हैं। वे भी लगातर दो बार मुख्यमंत्री बने और देश की मीडिया में हमेशा छाए रहे। अपने समर्थन की कीमत उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार से काफी वसूल की। उन्होंने हैदराबाद और साइबराबाद (दोनों को जुड़वा शहर कहा जाता है) के विकास में पैसा पानी की तरह बहाया लेकिन गांव के विकास को भूल गए। जनता ने उनको अगले ही चुनाव में गद्दी से उतार दिया। आज किसी को पता है कि वे देश की राजनीति में कहां हैं यहां तक कि राज्य की राजनीति में भी उनका कोई विशेष योगदान नहीं रहा।

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