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हरेश कुमार
पिछले कुछ दिनों से शरद यादव के बारे में राष्ट्रीय मीडिया और टेलीविजन में पढ़ और देखकर इतना परेशान हूं कि बता नहीं सकता। ये वही शरद यादव हैं जो लालू यादव के शासन काल में उनके मुख्य सलाहकार थे और लालू यादव द्वारा लिए गए हर फैसले में वे शामिल रहा करते थे। बिहार की बर्बादी में लालू यादव के साथ-साथ शरद यादव भी समान रुप से भागीदार रहे हैं।
राजनीति जो ना कराए। लालू से कुछ मतभेद हो गए तो वे नीतीश के साथ हो गए।
राष्ट्रीय मीडिया में इन्हें देश का सबसे बड़ा, पिछड़ों का नेता और उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार तक बताया जा रहा था और जमीनी हालात यह है कि ये बगैर किसी दल के सहारे के अपने बूते एक संसदीय या विधायक का चुनाव नहीं जीत सकते।
बिहार के मधेपुरा (यादव बहवल क्षेत्र है, कहने का अर्थ है कि यहां यादवों की आबादी ही निर्णायक साबित होती है) से जहां से वे जीतकर संसद में जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं, से लोकसभा की सीट जीतने के लिए इन्हें बराबर किसी ना किसी पार्टी का सहारा लेना पड़ता है। पहले लालू के साथ थे तो अब नीतीश कुमार के साथ हैं। अभी आप इन्हें बेपेंदी के लोटा कह सकते हैं।
इनकी एक भी बात, नीतीश कुमार नहीं मानते हैं। हाल में, राज्यसभा एवं विधान परिषद के लिए टिकट को लेकर जो कुछ भी हुआ, उससे जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव को पार्टी में अपनी हैसियत का ब़खूबी पता चल गया.। पहले भी यह बात कही और सुनी जाती थी कि शरद यादव की जदयू में ज़्यादा नहीं चलती, पर हाल इतना बुरा है, यह पहली बार उनसे जुड़े नेता एवं कार्यकर्ता समझ पाए। और ये राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के संयोजक के पद पर विराजमान है। हमारा देश ऐसे ही नेताओं से परेशान है। बस लोगों को धोखा देने के लिए इन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी का चेहरा रखा गया है। इस कदम से आप नेताओं की चाल को आप समझ सकते हैं।
हां, यह सही है शरद यादव ने अपनी राजनीति की शुरुआत जबलपुर, (मध्यप्रदेश जहां के वे मूल निवासी हैं) से की जहां उन्होंने सन 1974 के उपचुनाव में जिस सीट (सेठ गोविंद दास के निधन से खाली हुई) पर कभी कांग्रेस पार्टी हारी नहीं थी, से जेल में रहते हुए जीत दर्ज की। उन्हें आपातकाल से पहले ही जेल में डाल दिया गया था। फिर उन्होंने आपातकाल के बाद, बिहार के मधेपुरा को अपना संसदीय क्षेत्र बनाया। जहां से वे कई बार चुने गए हैं। वे राज्यसभा के भी सदस्य रह चुके हैं।
और हवाला कांड में जैन बंधुओं से 3 लाख की रिश्वत लेने की बात भी उन्होंने स्वीकारी थी, ये अलग बात है कि वे हमेशा जन-आंदोलनों में हिस्सा लेते रहे हैं।
इसके अलावा, वे हमेशा से महिला आरक्षण विधेयक के मौजूदा स्वरूप में पारित होने पर विरोध करते रहे हैं।
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